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________________ तुं सोळे कलाए पूरो, तारी सामे साव अधूरो, . .. माराथी क्यां पहोंचाय?... ओ नाथ ! रंगराग जगतना जोया, नयनोना नूर खोया, बळतामां घी होमाया... ओ नाथ ! मारा नाथ सदाये हसता, मारा हृदयकमळमां वसता, छोडीने क्या जवाय?... ओ नाथ आ भवना सागरमां - • आ भवना सागरमां, सहारो ओक ज मारो तुंः मझधारमा छे नैया, हवे तो अक किनारो तुं... मृगजळने में सरोवर मान्युं, बुझी न मननी प्यास, (२) अन्यतणी उपासना कीधी, ना पूज्या भगवान (२) आव्यो तुज चरणोमां, हवे तो तारणहारो तुं... ___ मुक्तिमारगनो हुँ अभिलाषी, ना कोईनो संगाथ, (२) - आकुळव्याकुळ मनडुं माएं, वांछे तारो साथ (२) अंधकार भर्या पंथे, प्रवासीनो सथवारो तुं... तुं निर्मोही सद्गुणसागर, हुं अवगुण भंडार (२) कर्मना बंधन चूर कर्या तें, में रच्यो संसार (२) अंधारा मुज दिलमां, चमकतो तेज सितारो... RANKER Re
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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