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________________ प्रभु ओ विनंती... प्रभु ! ओ विनंती, हवे तो स्वीकारो; नथी गमतुं भवमां, हवे तो उगारो... प्रभु कदि क्रोधना तो, वादळ चडे छे; समजना सूरजने ते आवरे छे. समीर थई क्षमाना हवे तो पधारो... कदि मान हाथी, आवी चडे छे; विनयना शिखरेथी गबडावी दे छे, समर्पणनी सरगम, बनीने पधारो... कदि मोहना तो, सर्पो दंशे छे; संयमनी साधनाने, सळगावी दे छे, मयूर बनीने, हवे तो पधारो... कदि तो कपटना, कांटा उगे छे; निखालस विचारोना, फूलोने विधे छे, माळी बनीने, हवे तो पधारो... लालसानो सागर, तोफाने चडे छे; तप अने त्यागना, वहाणो डूबे छे, सुकानी बनीने, हवे तो पधारो... हृदय कमलमां, जो तुं पधारे; जीवननी नैया तो, पहोंचे किनारे, राहबर बनीने, हवे तो पधारो.. छेल्ली आ विनंती करुं छु तमोने; विसारी ना देशो, प्रभुजी अमोने, श्वासोनी धडकन, बनीने पधारो... आटलुं तो आपजे... आटलुं तो आपजे भगवान ! मने छेल्ली घडी, ना रहे मायातणां बंधन मने छेल्ली घडी. आ जिंदगी मोंधी मळी... पण जीवनमा जाग्यो नहि, अंत समये मुजने रहे... साची समज छेल्ली घडी... ज्यारे मरण शय्या परे... मींचाय छेल्ली आंखडी तुं आपजे त्यारे प्रभुमय... मन मने छेल्ली घडी.. -
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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