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________________ - उच्चोपलासन मशीतकरातपत्रं, . वातोच्चलत् वितत निर्जर चामरं च; देवाचित ! त्रिकमिहास्तु तवैवमेव, प्रख्यातयत् त्रिजगतः परमेश्वरत्वम् ...३१ भावार्थ । हे देवाधिदेव ! गिरनार गिरिवर उपर (१) उच्च पाषाण (पथ्थर) रुपी आसन, (२) सूर्यरूपी शिरछत्र अने (३) पवनना वेग वडे ऊंचा जता तेम ज विस्तीर्ण अवा झरारुपी चामर, आ त्रणे तारी विशिष्टतानो संगम तारा त्रिभुवनना परमेश्वरपणानी · साक्षी पूरे छे. उक्तेष्वमीषु वचनेषु मयाऽमृतानि, जानीध्वमादृत रुषाऽप्यनुरागयुक्त्या ; नेत्रादिषु प्रथितसाम्यगुणेन मे हि, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ...३२ भावार्थ AND हे जगविभू ! जेम पंडित पुरुषो मारां नेत्रयुगल तेमज मुखचंद्रने जोई कमळनी कल्पना करे छे तेम (आपना) विरहनी वेदनाथी पीडित ओवी मारा वडे आ कठोर छतां प्रीतिपूर्वक उच्चारायेला कटु वचनोमां आप अमृतनी ज कल्पना करजो. R Remention OItinentatihika
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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