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________________ - - समतारस भरियो गुण दरियो, नेमनाथ गिरनार; सुता जागता ध्यावं निशदिन, श्वासमांहि सो वार. ॥४॥ मन माणिककुं सोंप्यु में तो, मनमोहनने उधार; प्रेम व्याज चूढ्यो छे इतनो, किम छूटशे किरतार. ॥५॥ हाएं नहि तुज बल थकीजी, सिद्धसुख दातार; श्रद्धा भरी छे अंक हृदयमां, तुजथी पामीश पार. ॥६॥ 'आनंदधरगिरि', 'सुखदायी', 'भव्यानंद' मनोहार; 'परमानंदगिरि', 'इष्टसिद्धगिरि', 'रामानंद जयकार.॥ ७ ॥ 'भव्याकर्षणगिरि', 'दुःखहरगिरि', 'शिवानंद' सुखकार; जगनायक नेमिनाथ कहावे, गिरिनायक शणगार. ॥८॥ शामळियाकुं अखियन जाणे, करुणारस भंडार; . हेमवदे प्रभु तुज अखियनकुंदीयो छबी अवतार. ॥९॥ तारो तारो नेमिनाथ... (राग : बापलडां रे पातिकडां...) तारो तारो नेमिनाथ मने तारो, भवना दुःखडां वारो रे; माहरे मन गिरनार गिरिवर, जाणो ओक सहारो रे... ॥१॥ जैनधर्मी अंबिका परणी, ब्राह्मण कुले जावे रे; साधुने पडिलाभी हरखे, पुण्य पोटलियां पावे रे... ॥२॥ कटु वचन सासुना सूणीने, सुतदोय लेइ घर छोडी रे; __ गिरनार-नेमिनाथ रटतां-रटतां, पडे कूवे करजोडी रे...॥३॥ अम शुभध्यानथी उपनी भवने, गिरिओ नेम जूहारे रे; थाये शक्र प्रभु परभाविका, शासन विध्न निवारे रे... ॥ ४ ॥ ब्राह्मण अतिहिंसक मिथ्यात्वी, अति व्याधि व्यापतो रे; गिरनारगिरिनुं शरणुं पामी, यक्ष गोमेध ओ थातो रे... ॥ ५ ॥ १५५
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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