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________________ (३०) सांभळ स्वामी चित्तसुखकारी ! (राग - इतनी शक्ति हमे देना ... ) सांभळ स्वामी ! चित्त सुखकारी ! नवभव केरी हुं तुज नारी ! प्रीति विसारी कां प्रभु मोरी, कयुं रथ फेरी जाओ छोरी १ ... तोरण आवी शुं मन जाणी ? परिहरी माहरी प्रीति पुराणी, किम वन साधे ? व्रत लीये आधे विण अपराधे श्ये प्रतिबंध ?... २ प्रीति करीने किम तोडीजे, जेणे जस लीजे ते प्रभु कीजे, जाण सुजाण ज ते जाणीजे, वात जे कीजे ते निवहीजे ... ३ उत्तमही जो आदरी छंडे, मेरू महीधर तो किम मंडे ? जो तुम सरीखा सयण ज चूके, तो किम जलघर धारा मूके... ४ निगुणा भूले ते तो त्यागे, गुण विण निवही प्रीति न जाये, पण सुगुणा जो भूली जाये, तो जगमां कुणने कहेवाये ?... ५ एक पंखी पण प्रीति निवाहे, धन धन ते अवतार आराहे, इम कही नेमशुं मली एकतारे, राजुल नारी जड़ गिरनारे... ६ पूरण मनमां भाव धरेइ, संयमी होइ शिवसुख लेइ, म शुं मलीया रंगे रलीया, केशर जंपे वंछित फलीयां... ७ ( ३१ ) एह अथिर संसार - स्वरूप (राग - आंखडी मारी प्रभु ) एह अथिर संसार - स्वरूप छे इस्यो, क्षण पलटाए रंगपतंग तणो जिस्यो ! बाजीगरनी बाजी जेम जूठी सही, तिम संसारनी माया ए साची नही... १ 133
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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