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________________ डूबी भवसागरमां नेया, मेरे तुम बीन कौन खेवैया; तुम हो अरजी के सुनवैया, बेडा पार लगानेवाले. अ. ३ दिल मेरा गुलाम, हरदम लेता तेरा नाम; मुझे भक्ति सिवा नही काम, मेरे दिलमें समानेवाले. अ. ४ तुम तो नेमनाथ भगवान, लीना सहसावनमें ध्यान; कीना अति उत्तम ए काम, आतम पार लगानेवाले. अ. ५. (६) में आज दरिसण में आज दरिसण पाया, श्री नेमिनाथ जिनराया. प्रभु शिवादेवीना जाया, प्रभु समुद्रविजय कुल आया, कर्मो के फंद छुडाया, ब्रह्मचारी नाम धराया; जीने तो जगतकी माया (२) में. १ रैवतगिरि मंडनराया, कल्याणक तीन सोहाया, दीक्षा केवल शिवराया, जगतारक बिरुद धराया; तुम बैठे ध्यान लगाया. (२) में. २ अब सुनो त्रिभुवनराया, में कर्मों के वश आया, मैं चतुर्गति भटकाया, में दुःख अनंतां पाया; ते गीनती नाही गिनाया. (२) में. ३ में गर्भावासमें आया, उंधे मस्तक लटकाया, आहार अरसविरस भुगताया, एम अशुभ करम फल पाया; इण दुःखसे नाहि मुकाया (२) में. ४ नरभव चिंतामणि पाया, तब चार चोर मील आया, मुजे चौटेमें लूंट खाया, अब सार करो जिनराया; किस कारण देर लगाया (२) में. ५ ૧૧૭
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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