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________________ | श्री नेमिनाथ प्राचीन स्तवन विभाग | . . . । (१) निरख्यो नेमि जिणंदने । निरख्यो नेमि जिणंदने अरिहंताजी, राजिमती कर्यो त्याग; भगवंताजी. ब्रह्मचारी संयम ग्रह्यो अरि., अनुक्रमे थया वीतराग - भ. १ चामर चक्र सिंहासन अरि., पादपीठ संयुक्त - भ. छत्र चाले आकाशमां अरि., देवदुंदुभि वर उत्त - भ. २ . सहस जोयण ध्वज सोहतो अरि., प्रभु आगल चालंत - भ.. कनक कमल नव उपरे अरि., विचरे पाय ठवंत - भ. ३ चार मुखे दीये देशना अरि., त्रण गढ झाकझमाल - भ.. केश रोम श्मश्रु नखा अरि., वाधे नहि कोइ काल - भ. ४ कांटा पण उंधा होये अरि., पंच विषय अनुकूल - भ. षट्ऋतु समकाले फळे अरि., वायु नहि प्रतिकूल - भ. ५ पाणी सुगंध सुर कुसुमनी अरि. वृष्टि होय सुरसाल - भ. पंखी दीये सुप्रदक्षिणा अरि., वृक्ष नमे असराल - भ. ६ . जिन उत्तम पद पद्मनी अरि., सेवा करे सुरकोडी - भ. चार निकायना जघन्यथी अरि, चैत्यवृक्ष तेम जोडी - भ. ७ (२) तोरण आवी रथ | __राग : एक दिन पुंडरीक...... तोरण आवी रथ फेरी गया रे हां, पशुआं शिर देइ दोष मेरे वालमा; नव भव नेह निवारियो रे हां, शो जोइ आव्या जोष. मेरे. तो.१ चंद्र कलंकी जेहथी रे हां, रामने सीता वियोग; मेरे. .तेह कुरंगने वयणडे हां, पति आवे कुण लोग. मेरे. तो. २ उतारी हुँ चित्तथी रे हां, मुक्ति धुतारी हेत; मेरे. सिद्ध अनंते भोगवी रे हां, तेहशुं कवण संकेत. मेरे.तो ३ . ૧૧૩
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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