SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जावंत केवि साहू सूत्र जावंत केवि साहू, भरहेरवयमहाविदेहे अ; सव्वेसि तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंडविरयाणं. (भावार्थ : आ सूत्रमा भरत, ऐरावत अने माहविदेह त्रणेय श्रेत्रमा विचरतां सर्वे साधु साध्वीजीओने नमस्कार करवामां आवे छे.) (नीचेनुं सूत्र फक्त पुरूषोए बोलवू) नमोऽर्हत्सिध्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः) . (भावार्थ : आ सूत्रमा पंचपरमेष्ठि भगवंतने नमस्कार करवामां आव्यो छे.) (आ पछी आ पुस्तकमांथी सुंदर अने भाववाही . स्तवनोना संग्रहमांथी कोईपण एक स्तवन गावं अथवा नीचेनुं स्तवन गावं) (श्री सामान्य जिन स्तवन) आज मारा प्रभुजी, सामु जुओने, सेवक कहीने बोलावो रे; एटले हुं मनगमतुं पाम्यो, रूठडां बाळ मनावो, . . मारा सांइ रे .....१ पतितपावन शरणागतवत्सल, एं जश जगमां चावो रे; मन रे मनाव्या विण नहीं मूकुं, ए ही ज माहरो दावो मारा सांइ रे .....२ कबजे आव्या हवे नहि मूकुं, जिहां लगे तुम सम थावो रे; जो तुम ध्यान विना शिव लहिए, तो ते दाव बतावो. . .. ... मारा सांइ रे.....३ ૧૧૦
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy