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________________ पशुडां करे पोकार, तिहां साळाने बोलावे; सारथवाहने पूछता, जीव बंधने केम बांध्या. १३ जादवकुल एने परे, परभाते गौरव दइशुं; विषयारसने कारणे, जीव संहार करीशुं. १४ अंग फरके जमणुं तिहां, नवला नेमकुमार; राजुल कहे सुणो साहेलीओ, रथ वाळ्यो तत्काळ. १५ वरसीदान देई करी, एक कोडी साठ लाख; सहसावन जइ संयम लीधो, सहस पुरुष संगाथ. १६ राजुल धरणी ढळी पड्या, उज्जयंत गढ चाल्या; गुफामां श्री रहनेमी, राजुल प्रतिबोधे. १७ स्वामी हाथे संजम लीधो, संलेखणा एक मास; केवलज्ञाने झळहळे, पाम्या शिवपुर वास. १८ पीयु पहेलां मुगते गया, धनधन नेमकुमार; परणे शिवनी नार तिहां, सहस पुरुष संगाथ. १९ भणतां शिवसुख उपजे, गुणतां मंगलकार; विनयविजय वाचक जस, तस घर कोडी कल्याण. २० (११) बावीशमा श्री नेमिनाथ, घोर ब्रह्मव्रत धारी; शक्ति अनंती जेहनी, त्रण भुवन सुखकारी ... (१) इन्द्र चन्द्र नागेन्द्र ने वासुदेवो सर्वे; चक्रवर्तिओ नेमिने, सेवे रही अगर्वे... (२) कृष्णादिक भक्तो घणाए, जेनी सेवा सारे; एवा परमेश्वर विभु, सेवंता सुख भारे... (३) ૧૦૫
SR No.002497
Book TitleGirnar Geetganga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemvallabhvijay
PublisherGirnar Mahatirthvikas Samiti
Publication Year2016
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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