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________________ Sakesesaks.ske.skskskske.sakse.siksakese.ske.saske.sakesakeselesslesslessle.ske.ske.ske.slesslesske.saks.ske.salesalesake.saksksksks किन्तु उत्तराध्ययन केवल व्यावहारिक जीवन की शिक्षा देने वाला शास्त्र ही नहीं है, इसमें अध्यात्म जीवन के अनुभूतिपूर्ण उपदेश, वैराग्य और अनासक्ति की धारा प्रवाहित करने वाले सुवचन तथा प्रतिक्षण अप्रमत्त, जागरूक और कर्त्तव्यशील रहने की शिक्षाएँ भी पद-पद पर अंकित हैं। इस सूत्र में भगवान महावीर के क्रान्तिकारी विचारों के स्वर भी मुखरित हैं तो बुद्धि और प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा करने का सन्देश भी गुम्फित है। कुल मिलाकर सम्पूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र जीवन और अध्यात्म का सामंजस्यपूर्ण शास्त्र है। वैदिक परम्परा में जो स्थान 'गीता' का है, बौद्ध परम्परा में जो स्थान ‘धम्मपद' का है, जैन परम्परा में वही स्थान उत्तराध्ययनसूत्र को प्राप्त है। उत्तराध्ययन का स्वाध्याय जीवन अभ्युदय का सोपान है। प्रस्तुत संस्करण उत्तराध्ययनसूत्र के अब तक अनेक सुन्दर/सुन्दरतम संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें मेरा प्रयत्न उनसे कोई श्रेष्ठ हो, ऐसा मैं नहीं कहता, क्योंकि पूर्वाचार्यों व मनीषी विद्वानों के समक्ष * मैं स्वयं को अल्पज्ञ और अल्पबुद्धि मानता हूँ। किन्तु उत्तराध्ययन के रूपक-दृष्टान्त एवं कुछ विशेष तथ्यों को चित्रमय प्रस्तुत करने का हमारा यह प्रयत्न अवश्य ही नवीन और सर्वसाधारण * के लिये उपयोगी होगा यह विश्वास करता हूँ। मैं देखता हूँ कि अधिकतर लेखक अपनी कृति को विद्वद्भोग्य बनाने का तो प्रयत्न करते हैं, परन्तु सर्वसाधारण की चिन्ता कम ही करते हैं। सर्वसाधारण व लोकोपयोगी होने से ग्रंथ का स्तर गिर नहीं जाता या उसकी महत्ता कम नहीं होती, अपितु मेरे विचार में तो जो पुस्तक या ग्रंथ सर्वसाधारण के लिये उपयोगी होता है, वह ज्यादा सफल और महत्वपूर्ण माना जाता है, जबकि विद्वद्भोग्य महाग्रंथ केवल अलमारियों की शोभा बढ़ाते रहते हैं। अस्तु...........। ___ पूज्य प्रवर्तक गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. सा. के दीक्षा हीरक जयन्ती वर्ष पर हम सब भक्त शिष्यों की यह अभिनव भेंट उनके कर-कमलों में समर्पित करते हुये हमें हार्दिक प्रसन्नता है कि इस शुभ प्रसंग पर हमने एक नई और सर्वजन उपयोगी भेंट प्रस्तुत की है। ___जैन समाज के प्रसिद्ध साहित्यकार श्रीयुत श्रीचन्द सुराना ने चित्र तैयार कराने से लेकर सभी के उत्तरदायित्वों का बड़े स्नेह एवं आत्मीयभावपूर्वक निर्वाह किया है तथा अनेक गुरुभक्त उदारमना - सज्जनों ने अर्थ-सहयोग प्रदान कर प्रकाशन-कार्य को सम्पन्न करवाया है। मैं उन सभी को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ और विश्वास करता हूँ कि चित्रमय आगम प्रकाशन का हमारा यह महनीय प्रयत्न आगम सम्पादन-प्रकाशन के क्षेत्र में एक नया आयाम स्थापित करेगा तथा आगे व्यापक रूप लेता (6)
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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