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________________ द्वादशा-परिचय २कुपथ्य एवं अपथ्य हैं, उन सब का उल्लेख आयुर्वेदिक आदि पुस्तकों में वर्णित है । वैसे ही जिस-जिस साधक को जैसा-जैसा भवरोग लगा हुआ है, उस २ साधक के लिए वैसा ही दोष, किया परित्याज्य है, इत्यादि सविस्तर वर्णन करने वाला यह परिच्छेद हो, ऐसी संभावना है। ७. च्युताऽच्युतश्रेणिकापरिकर्म मूलम्-से किं तं चुप्राचुअसेणियापरिकम्मे ? चुप्राचुअसेणियापरिकम्मे एक्कारसविहे पन्नत्ते, तं जहा. १. पाढोगा (मा) सपयाई, २. केउभूत्रं, ३. रासिबद्धं, ४. एगगुणं, ५. दुगुणं, ६. तिगुणं, ७. केउभूग्रं, ८. पंडिग्गहो, ६. संसारपडिग्गहो, १०. नंदावत्तं, ११. चुनाचुप्रवत्तं, से तं चुनाचुसेणियापरिकम्मे । छ चउक्कनइआई, सत्ततेरासियाई, से तं परिकम्मे । छाया-अथ किं तत् च्युताऽच्युतश्रेणिकापरिकर्म ? च्युताऽच्युतश्रेणिकापरिकर्म एकादशविध प्रज्ञप्तं, तद्यथा- १. पृथगाकाशपदानि, २. केतुभूतम्, ३. राशिबद्धम्, ४. एकगुणम्, ५. द्विगुणम्, ६. त्रिगुणम्, ७. केतुभूतम्, ८. प्रतिग्रहः, ६. संसारप्रतिग्रहः, १०. नन्दावर्तम्, ११. च्युताऽच्युच्युतावर्तम्, तदेतच्च्युताऽच्युतश्रेणिकापरिकर्म । षट् चतुष्कनयिकानि, सप्त त्रैराशिकानि, तदेतत्परिकर्म । भावार्थ-शिष्यने पूछा-भगवन् ! वह च्युताच्युतश्रेणिका परिकर्म कितने प्रकार का है ? आचार्य उत्तर देते हैं-हे शिष्य ! वह ११ प्रकार का है, जैसे १. पृथगाकाशपद, २. केतुभूत, ३. राशिबद्ध, ४. एकगुण, ५. द्विगुण, ६. त्रिगुण, ७. केतुभूत, ८. प्रतिग्रह, ६. संसारप्रतिग्रह, १०. नन्दावर्त, ११. च्युताच्युतवर्त, यह च्युताच्युतश्रेणिका परिकर्म सम्पूर्ण हुआ। ___ आदि के छ परिकर्म चार नयों के आश्रित होकर कहे गये हैं और सात परिकर्मों में राशिक दर्शन का दिग्दर्शन कराया गया है । इस प्रकार यह परिकर्म का विषय हुआ। टीका- इस सूत्र में परिकर्म के अन्तिम भेद का वर्णन किया गया है अर्थात् च्युताच्युतश्रेणिका परिकर्म, इस का वास्तविक विषय और अर्थ क्या है ? इस का उत्तर निश्चयात्मक तो दिया नहीं जा सकता, क्योंकि वह श्रुत व्यवच्छिन्न हो गया है, फिर भी इस में पैराशिक मत का सविस्तर वर्णन है। जैसे स्वसमय में सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि एवं संयत, असंयत और संयतासंयत, सर्वाराषक, सर्वविराधक, और देश आराधक-विराधक की परिगणना की गई है, हो सकता है, पैराशिक
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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