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________________ - १२ नन्दीसूत्रम् जान लिया कि यही बच्चे की असली माता है। इसलिए बच्चा उसी को सौंप दिया तथा गृहस्वामिनी भी उसे ही बना दिया। और दूसरी बन्ध्या को धक्के मार कर निकाल दिया। यह मन्त्री की औत्पतिकी बुद्धि का उदाहरण है। १८. मधु-सित्थ-मधु-छत्र-किसी कौलिक-जुलाहे की पत्नी दुराचारिणी थी। एक बार उसने अपने पति के ग्रामान्तर जाने पर किसी जार-पुरुष से व्यभिचार का आसेवन किया। वहाँ पर उसने जाल वृक्षों के मध्य में मधुछत्र देखा और तत्काल ही घर पर लौट आई। दूसरे दिन जब उस का पति मधु खरीदने के लिये बाजार में जाने लगा तो उस की स्त्री ने रोक दिया कि आप मधु क्यों खरीदते हो, मैं तुम्हें शहद का छत्ता दिखाती हूं। मधु खरीदने के लिए जाते हुए को रोककर उसे जालवृक्षों के पास ले गई। परन्तु उसे मधु छत्र दृष्टि गोचर न हुआ। तब वह उसे उस शंका युक्त स्थान पर ले गई, जहां उसने व्यभिचार का आसेवन किया था, और कौलिक को मधुछत्र दिखला दिया। कौलिक ने उस प्रकार मधु-छत्र को दिखाते हए समझ लिया कि यहाँ आकर यह दुराचार का सेवन करती है। यह कौलिक की औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है। १९. मुद्रिका-किसी नगर में एक ब्राह्मण रहता था, वह सत्यवादी था। जनता में यह प्रसिद्ध था कि इस पुरोहित के पास जो भी अपनी धरोहर रखता है, चाहे वह कितने समय के पीछे मांगे, उसे तत्काल ही लौटा देता है। यह सुनकर एक द्रमक-गरीब व्यक्ति ने अपनी हजार मोहरों को नोली उस पुरोहित के पास धरोहर के रूप में रख दी और स्वयं देशान्तर में चला गया । बहुत काल बीतने पर वह गरीब व्यक्ति उस नगर में आया और पुरोहित से अपनी धरोहर मांगी। पुरोहित ने बिल्कुल इनकार कर दिया। कहने लगा-"तू कौन है ? कहाँ से आया है ? कैसी तेरी धरोहर है ?" तब वह बिचारा गरीब उसकी बात को सुन कर और अपनी धरोहर को न पाकर पागल हो गया और 'हजार मोहरों की नोली' का उच्चारण करता हुआ इधर-उधर घूमने लगा। - एक दिन उस गरीब ने मन्त्री को जाते हुए देखा और उस से कहा-"पुरोहित जी ! मेरी हजार मोहरों की जो नोली आप के पास धरोहर में रखी है, उसे दे दीजिये।" यह सुन कर मन्त्री का मन कृपा से द्रवित हो उठा और राजा से सारी बात जा कर कह सुनाई। राजा ने गरीब और पुरोहित को बलाया। दोनों राज सभा में आ गए। राजा ने पुरोहित से कहा कि-"इसकी धरोहर क्यों नहीं देते हो ?" पुरोहित ने उत्तर दिया-"देव ! मैं ने इस का कुछ भी धरोहर रूप में ग्रहण नहीं किया है।" तब राजा मौन हो गया और पुरोहित भी अपने घर चला गया। पीछे से राजा ने द्रमक को एकान्त में बुलाया और पूछा- “अरे ! जो तू कहता है, क्या यह सत्य है ?" तब द्रमक ने दिन, मुहूर्त, स्थान और पास में रहे व्यक्तियों के नाम तक गिना दिये। तत्पश्चात् एक दिन पुरोहित को बुलाकर राजा उस के साथ खेल में मग्न हो गया। दोनों ने परस्पर अंगूठियाँ बदल लीं । तब राजा ने पुरोहित को पता न लग पाए। इस प्रकार गुप्त पुरुष को पुरोहित की अंगूठी देकर, उसे कहा कि पुरोहित के घर जा कर उसकी भार्या से कहो-"कि मुझे पुरोहित ने भेजा है, यह नामाङ्कित मुद्रिका आपको विश्वास दिलाने के लिये साथ में भेजी है, उस दिन, उस समय द्रमक के पास से ली हुई हजार सुवर्ण मोहरों की नोली जो अमुक स्थान पर रखी हुई है, शीघ्र भेज दें।" राजकर्मचारी ने वैसे ही किया । ब्राह्मण की पत्नी ने भी प्रत्यय रूप नामाङ्कित मुद्रिका को देखकर
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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