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________________ नन्दीसूत्रम् । यद्यपि आजकल बहुत से ऐसे दृहांत भी हैं जो कि औत्पत्तिकी बुद्धि, वैनयिकी बुद्धि' कर्मजा तथा पारिणामिकी बुद्धि से सम्बन्धित हैं । तदपि उनका उल्लेख न करके केवल गत जो दृष्टान्त हैं, उन्हीं की परम्परा को अक्षुण्ण रखने के लिए, उन्हें लिखा जा रहा है । १. भरत-उज्जयिनी नगरी के निकट एक नटों का ग्राम था, उसमें भरत नामक एक नट रहता था। उसकी धर्मपत्नी का किसी असाध्य रोग से देहान्त हो गया। वह अपने पीछे रोहक (रोहा) नामक एक छोटे बालक को छोड़ गई। वह बालक होनहार, बुद्धिमान एवं पुण्यवान था। भरत नट ने अपनी तथा रोहक की सेवा के उद्देश्य से दूसरा विवाह किया, किन्तु वह विमाता, रोहक के साथ वात्सल्य, ठीक-ठीक व्यवहार नहीं रखती थी। परिणाम स्वरूप रोहक ने एक दिन उस विमाता को कहा कि माता जी ! "आप मेरे साथ प्रेम-व्यवहार क्यों नहीं करतीं? जब कभी मैं देखता हूं, तब आप की ओर से किए व्यवहार में कलुष्यता झलकती है, यह आपके लिए उचित नहीं है।" इससे वह कर हृदय वाली विमाता बोली-"अरे रोहक ! यदि मैं तेरे साथ मधुर व्यवहार नहीं रखती तो तू मेरा क्या बिगाड़ देगा ? उसे उत्तर देते हुए रोहक ने कहा कि 'मैं ऐसा उपाय करूंगा जिससे तुझे मेरे पाओं की शरण लेनी पड़ेगी।" यह बात सुनकर बह विमाता क्रुद्ध होकर कहने लगी-"अरे नीच तू ने जो करना है, करले, मैं तेरी क्या परवाह करती हूं, तेरे जैसे बहुतेरे फिरते हैं । इतना कहकर विमाता चुप हो कर अपने कार्य में व्यस्त हो गई। इधर रोहक भी अपनी कही हुई बात पूर्ण करने के लिए स्वर्णावसर की प्रतीक्षा में समय व्यतीत करने लगा। कुछ दिनों के पश्चात् वह रोहक अपने पिता के पास ही रात को सोया हुआ था। अर्धरात्रि में अचानक निद्रा खुली और कहने लगा-"पिता जी ! पिता जी ! कोई अन्य पुरुष दौड़ा जा रहा है।" . बालक की यह बात सुनकर भरत नट के मन में शंका उत्पन्न हो गई कि मेरी स्त्री सदाचारिणी प्रतीत नहीं होती। उस दिन से वह नद उससे विमुख हो गया, सीधे मुंह से बात-चीत भी करनी छोड़ दी और अलग स्थान में शयन करने लग गया । इस प्रकार पति को अपने से विमुख देखकर वह जान गई कि यह सब कुछ रोहक की शरारत है । इसको अनुकूल किए बिना पतिदेव सन्तुष्ट नहीं हो सकते । उनके रुष्ट रहने से जीवन में सरसता नहीं, नीरस-जीवन किसी काम का नहीं। ऐसा सोचकर उसने रोहक को विनयपूर्वक मधुर व्यवहार से मनाया और “भविष्य में सदैव सद्व्यवहार ही रखूगी;" ऐसा विश्वास दिलाकर रोहक को संतुष्ट किया । विमाता के अनुनय से प्रसन्न होकर रोहक ने भी पिता की शंका एवं भ्रम को दूर करने का सुअवसर जानकर चान्दनी रात में अंगुली के अग्र भाग से अपनी छाया पिताजी को दिखाते हुए कहो-- "देखो वह पुरुष जा रहा है।" भरतनट ने सोचा जो पुरुष हमारे घर में आता है, वही डर कर भागा जा रहा है जिसके लिए रोहक संकेत कर रहा है। इतना सुनते ही क्रोध की ज्वाला भभक उठी; तुरन्त उसे मारने के लिए म्यान से तलवार निकाल ली, और कहा--"कहां है वह लम्पटी पुरुष ? अभी उसका काम तमाम करता हूं।" रोहक ने अपनी ही छाया को दिखाते हुए कहा--"यह है वह पुरुष" कहकर उसकी समझाने की बाल चेष्टा देखते ही भरत लज्जित हो गया और सोचने लगा ओहो ! मैंने बड़ी गलती की जोकि बालक के
SR No.002487
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAcharya Shree Atmaram Jain Bodh Prakashan
Publication Year1996
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size16 MB
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