SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्यतीर्थिक (अन्यमती) आदि के साथ भिक्षाचर्यादि-गमन-प्रायश्चित्त THE ATONEMENT OF GOING FOR SEEKING ALMS ALONG WITH THE NON-BELIEVER 40. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिहारिओ वा अपरिहारिएण सद्धिंगाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविसइ, अणुपविसंतं वा साइज्जइ । 41. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिहारिओ वा अपरिहारिएण सद्धिं बहिया विहारभूमिं विरभूमिं वा निक्खमइ वा पविसइ वा णिक्खमंतं वा पविसंतं वा साइज्जइ । 42. जे भिक्खू अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिहारिओ वा अपरिहारिएण सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जइ, दूइज्जतं वा साइज्जइ । 40. जो भिक्षु अन्यमती अथवा गृहस्थ के साथ तथा पारिहारिक साधु अपारिहारिक साधु के साथ गाथापति कुल में आहारप्राप्ति के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करता है अथवा निष्क्रमण-प्रवेश करने का समर्थन करता है। 41. जो भिक्षु अन्यमती या गृहस्थ के साथ तथा पारिहारिक साधु अपारिहारिक साधु के साथ विहारभूमि या विचारभूमि में निष्क्रमण - प्रवेश करता है अथवा निष्क्रमण- प्रवेश करने का समर्थन करता है। 42. जो भिक्षु अन्यमती या गृहस्थ के साथ तथा पारिहारिक साधु अपारिहारिक साधु के साथ ग्रामानुग्राम 'विहार करता है अथवा करने का अनुमोदन करता है। ( उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त करना होता है ।) 40. The ascetic who travels for seeking alms in the Gathapati clan along with a non believer or housholder, or pariharik ascetic or non-parihartik ascetic, or supports the ones who comes and goes so. 41. The ascetic who comes and goes for natural calls along with the non-believer with householder or the pariharik ascetic or non-Pariharik ascetic or supports the ones who does so. 42. The ascetic who travels from one village to another village along with a nonbeliever or householder, and with a pariharik ascetic or a non-pariharik ascetic or supports the ones who travels so there one laghumasik expiation comes to him. विवेचन - यहाँ अन्यतीर्थिक आदि का अर्थ इस प्रकार है 1. अन्यमती अथवा अन्यतीर्थिक - आजीवक, चरक परिव्राजक, शाक्य आदि । 2. गृहस्थ - भिक्षाजीवी गृहस्थ अर्थात् शनिवार आदि निश्चित दिन भिक्षा करने वाला । पारिहारिक- गवेषणा- दोषों का ज्ञाता और गवेषण के दोष न लगाने वाला । 3. 4. अपारिहारिक-गवेषणा-दोषों का ज्ञाता होते हुए भी प्रमादवश दोष लगाने वाला । भिक्षाकाल में भिक्षु के साथ उसी भिक्षु का जाना उचित है जो गवेषणा के सभी दोषों का पूर्ण ज्ञाता हो, अन्य व्यक्तियों जैसे अन्यतीर्थिक, भिक्षाजीवी गृहस्थ के साथ तथा स्वलिंगी अपारिहारिक के साथ जाने पर लघुमासिक प्रायश्चित्त विधान किया गया है। द्वितीय उद्देशक (49) Second Lesson
SR No.002486
Book TitleAgam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Sthanakavsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2015
Total Pages452
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nishith
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy