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________________ का रटन-स्मरण-जाप आदि मति को नम्र-सरल बनाता है, जिससे पापादि की विचारधारा दूर होती है और दुर्गति से बचा जा सकता है। अतः सद्गति नवकार से संभव है। एक बड़ी ही रोचक कथा आती है कि - . TAWAVVARMER Auya .. LAK- नमो अरिहताएं अमोनिया नमो अपरिगपाRN 7 . OTI SL नमो उकसावा प्र बाया --- - - -- - MAS/नमोलो REMEmraat रारूप AWAR देवलोक का एक देवता तीर्थयात्रा के लिये निकला है और पर्वतमाला में कोई ज्ञानी-गीतार्थ साधु महात्मा काउस्सग्ग ध्यान में खडे थे । उस देवता ने उन्हें देखा, और सद्भाव से मुनि के दर्शन - वंदन हेतु वह देवता उनके पास गया। वंदनादि करके देवता वहाँ बैठ गया। महात्मा का कायोत्सर्ग ध्यान पूर्ण होने पर उन्होंने देवता को धर्मलाभ देकर करूणामय दृष्टि से उसके सामने देखकर पूछा कैसे हो भाग्यशाली! क्या बात है बोलो ! अचानक उस देवता के मन में ऐसा स्फुरण हुआ कि मैं अपनी आगामी गति के विषय में इन ज्ञानी महात्मा को कुछ पूछ्। मुझे कौन सा जन्म धारण करना है? यदि आप कृपाकर ज्ञानयोग से बताएँ तो लाभ होगा। देवता यद्यपि जन्म से अवधिज्ञानी होते हैं, स्वयं सब कुछ जान सकते हैं, उपयोग द्वारा वे सब कुछ देख सकते हैं - जान सकते है, फिर भी भक्ति भावपूर्वक ज्ञानी महात्मा के पास जानने की इच्छा हुई, अतः पूछ लिया, परन्तु ज्ञानी महात्मा ने संसार के लोक व्यवहार का सार स्वर्गवास का उत्तर नहीं दिया । दे भी क्यों ? स्वर्गवासी तो स्वयं देवता 54
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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