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________________ में दो बैलों की बात आती है, जो इस बात की पुष्टि करती है। गतियाँ चार है। संसार चक्र इन चार गतियों का बना हुआ है। (१) देव, (२) मनुष्य, (३) नरक और (४) तिर्यंच गति। इस प्रकार ये चार गतियाँ प्रसिद्ध है। इन चार गतियों में समस्त ब्रह्माड के सभी जीवों का विभाजन किया गया है। इन चार गति सूचक स्वस्तिक में दो गतियाँ ऊपर हैं तथा दो गतियाँ नीचे है। स्वस्तिक को हम मध्य से विभक्त करें, तो एक आधा भाग ऊपर रहता है और दूसरा अर्ध भाग नीचे रहता है। इन में ऊपर के अर्ध भाग में मनुष्य और देव मति है । मनुष्यगति बाँयी ओर तथा देवगति दाहिनी ओर - इस प्रकार ऊपर की दोनों गतियाँ सद्गति सूचिका हैं, तथा नीचे के भाग में बाँयी ओर तिर्यंच गति तथा दाहिनी ओर नरक गति है। ये दोनो ही गतियाँ दुर्गति सूचिका है। सद्गति में सद् शब्द शुभ अथवा अच्छे के अर्थ में प्रयुक्त है जब कि दुर्गति में दुर् शब्द अशुभ अथवा बुरे के अर्थ में प्रयुक्त है। इस प्रकार दो गतियाँ शुभ होने से उन्हें सद्गति कहते है। देव और मनुष्य की गतियाँ सुखपूर्ण अच्छी गतियाँ है। तिर्यंच, और नरक की गतियाँ दुःखमय होती है। दुर्गति में पीडा-वेदना-कष्ट आदि अनेक प्रकार के दुःखों की प्रधानता होती है। जब कि सद्गति में धन, धान्य, संपत्ति, वैभव-भोग-विलास आदि सुखशांति की प्रधानता होने से सुख की गति के अर्थ में सद्गति कहलाती है। जीवों का एक गति में से अन्य गति में गमनागमन तो चलता ही रहता है। यह गमनागमन जन्म-मरण की प्रक्रिया के फल स्वरुप होता है। संसार एक चक्र है। चक्र गतिशील होता है अर्थात् जन्म-मरण के कारण गत्यन्तर और एक गति से दूसरी गति में गमनागमन तो सतत चलता ही रहता है। चार गतिओं में जीवों का गमनागमन - सूक्ष्म स्वरुप में चार गतियों में गमनागमन आदि का वर्णन तो दंडक सूत्र के गति आगति दंडक द्वार में सविस्तार किया गया है। यहाँ तो सामान्य रुप से (ग्रंथविस्तार के भय से) मात्र इतना ही वर्णन करते हैं कि स्थूलस्वरूप में चारों ही गतियों में से जीव किस गति में से आते है, और किस गति में जाते हैं। उपर्युक्त चित्र देखने से समझने में अधिक सरलता होगी। प्रथम चित्र में चार गति की दिशा प्रदर्शित है। दूसरे स्वस्तिक में दिखाया गया है कि मनुष्य गति के जीव चारों ही गतियों में जा सकते है, अर्थात, मनुष्य मृत्यु होने के पश्चात देवता भी बन सकता 45
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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