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________________ हो चुका हो ऐसे काल में दृष्टि पात करके इसकी आदि का पता कैसे लगाएँ ? संभव भी नहीं है। अतः अनंत के आधार पर अनादिपन सिद्ध होता है। इस प्रकार दोनों शब्दों को साथ जोडने पर अनादिता एवं अनंतता सिद्ध होती है । जब से नवकार महामंत्र है, तभी से अरिहंत भगवंत है जब से अरिहंत भगवंत है तभी से नवकार महामंत्र है। इस प्रकार दोनों की सिद्धि अन्योन्याश्रित है । इसिलिये पूर्व के श्लोक आगे चोवीशी हुई अनंती में नवकार महामंत्र की अनंतता और चोबीशियों की अनंतता प्रदर्शित की गई है और इस अनंतता के आधार पर अनादिता सिद्ध होती है, अतः नवकार महामंत्र की आदि या शुरुआत कैसे गिने ? गिनना संभव भी नही है और 'शक्य भी नही' है क्योंकि अरिहंतो के समय में नवकार महामंत्र था । अतः किन अरिहंत ने यह नवकार महामंत्र बनाया? कौन नामधारी अरिहंत थे? किसने नवकार की रचना की थी ? आदि कैसे कहें ? अनंत अरिहंतो में से किसी एक का नाम कैसे निश्चित किया जाए ? उदाहरणार्थ - इस वर्तमान चौबीशी के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान का नाम नवकार के रचयिता के रूप में हम निश्चित करें और कहें कि कदाचित उन्होनें नवकार महामंत्र की रचना की हो, परन्तु उन ऋषभदेव भगवान के १३ भव हुए हैं । उन तेरह भवों में से प्रथम धनसार्थवाह के भव में ५ आचार्य धर्मघोष सूरि महाराज को सार्थ में साथ रखकर वह चलता चलता एक ग्रास से अन्य ग्राम जाता था । तब मार्ग में अनेक दिनों के उपवास के पारणे में आचार्य देव को धृत की अखंड धारा और अखंड भाव से दान दिया था । उस प्रसंग पर आचार्य देव ने सार्थवाह धर्मबोध देने हेतु हितापदेश दिया था और धनसार्थवाहने सम्यग दर्शन की प्राप्ति की थी । इस प्रकार १३ भव तक उत्तम कोटि की धर्माराधना करते करते तीर्थंकर नाम कर्म ग्यारहवे भव में उपार्जित किया था और १३ वे भव में वे भगवान ऋषभदेव नथे । तो क्या उन्होंने अपने १३ भवों की उत्तम आराधना नमस्कार महामंत्र नवकार के अभाव में की थी ? उन्हें सम्क्त्व की प्राप्ति करवाने वाले आचार्य भगवंतादि मुनिगण थे । क्या वे सभी नवकार महामंत्र से अनभिज्ञ थे ? वे भी तो किसी न किसी तीर्थंकर के शासन में तो थे ही ! तो क्या समझा जाए यह कैसे कहा जाए कि आदिनाथ भगवान ने नवकार महामंत्र बनाया था ? अन्य प्रकार से यह भी कैसे कह सकते हैं कि भगवान महावीर स्वामी ने नवकार महामंत्र बनाया था । पूर्व की भाँति पुनः इसी प्रकार सोचें तो ख्याल आएगा - 21
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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