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________________ हुए भी ऐसी अव्यवस्था हो जाती है ? और यदि होती हैं तो क्या ऐसी अव्यवस्था ईश्वर की इच्छा से होती है अथवा बिना उसकी इच्छा के ही हो जाती है । यदि ईश्वर की इच्छा के विपरीत होती हो तब तो उसकी इच्छा के विरुद्ध बहुत कुछ होता है - यह पक्ष स्वीकार करना होगा और यदि स्वीकार न करते हैं तो फिर ईश्वर की उपस्थिति में ही उसके द्वारा निर्मित सृष्टि में अव्यवस्था क्यों हुई ? ऐसी अव्यवस्था की संभावना कैसे हो सकती हैं ? सृष्टि के पीछे तीन की व्यवस्था है । ब्रह्मा रचयिता है, विष्णु पालनकर्ता है और शंकर-महेश संहारक है । तो प्रश्न उठता है कि ब्रह्मा ने जिस सृष्टि की रचना की, क्या विष्णु ने उसका भली प्रकार पालन नहीं किया ? क्या उसका ध्यान न रखा जिसके कारण अव्यवस्था हो गई ? और जब अधर्म का उदय हुआ तथा धर्म की हानि हुई तब ईश्वर कहाँ था ? तब क्या ईश्वर किसी अन्य कार्य में व्यस्त था ? यदि आप इस बात से सहमत हैं कि ईश्वर किसी अन्य कार्य में व्यस्त था अतः दूसरी ओर अव्यवस्था हो गई, तो इस बात से सिद्ध होगा कि ईश्वर में एक साथ अनेक कार्य करने की सामर्थ्यता का अभाव है । तब फिर सर्व शक्तिमान सामर्थ्य के बिना ईश्वरत्व कैसे संभव हो सकता है ? और यदि एक साथ अनेक कार्य करने का सामर्थ्य ईश्वर में हो तो ऐसी अव्यवस्था कैसे हो जाती है ? अथवा हुई ? क्या तब ईश्वर निद्राधीन था । यदि निद्रा आदि की बात बीच में लाएगे तो सामान्य मानव-पशु पक्षी के ये तो लक्षण हुए । ईश्वर जब जब निद्रावश होता होगा, तब तब अव्यवस्था का उद्भव होता होगा, उससे तो बहतर यही है कि ईश्वर निद्राधीन ही क्यों बने ? न वह निद्राधीन होगा न अव्यवस्था होगी और न उस अव्यवस्था के निवारण हेतु उसे बार बार जन्म लेना पड़ेगा । ईश्वर ऐसा होने ही क्यों देता है ? जब ईश्वर सतत इस सृष्टि का संचालन करता है, उसकी इच्छानुसार ही वृक्ष का पत्ता भी हिलता है, वायु-प्रवाह होता है; पानी को गति मिलती है आदि बहुत सी व्यवस्था ईश्वर के हाथ में है, वह चलाता है तब व्यवस्था में सजग रहे हुए ईश्वर की उपस्थिति में ही अव्यवस्था क्यों ? सर्वथा विपरीत स्थिति क्यों पैदा हो जाती है ? क्या समझा जाए ? ईश्वर किस लिये अवतार लेता है ? ___ श्रीमद् भागवद्गीता के श्लोकों में दो प्रकार की ध्वनि निकलती हैं। धर्म की हानि और अधर्म का उदय आदि सृष्टि में जो अव्यवस्था होती है उसके 223
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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