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________________ श्री नमस्कार महामंत्र का स्वरुप नमस्करणीय - वंदनीय - पूजनीय स्मरणीय - आदरणीय परम पिता परमात्मा श्री महावीर प्रभु के चरणारविंद में अनंतश: नमस्कारपूर्वक श्री नमस्कार महामंत्र समग्र लोक में कितना और किस प्रकार व्याप्त है, इसकी उपमाएँ देते हुए 'श्री महानिशीथ' नामक छेदसूत्र आगम में कहा है कि.... जेणं एस पंच मंगल महासुयक्खंधे सेणंसयलागमतरोववती तिल तेल कमलमयरंदव्वसव्वलोए पंचत्थि कायमिव .. । - श्री महानिशीथ सूत्र जिस प्रकार तिल में तेल, कमल में मकरंद अथवा समग्र लोक में पंचास्तिकाय व्याप्त है, उसी प्रकार यह पंचमंगल महाश्रुतस्कंध ( नवकार) सभी आगमों में व्याप्त है । तिल में जिस प्रकार तेल सर्वांगीण रुप से व्याप्त है, कमल के पुष्प में सौरभ जैसे सर्वत्र व्याप्त है, और ये उपमाएँ भी कदाचित् पर्याप्त नहीं लगती होंगी, अतः अंत में बड़ी विशाल उपमा देते हुए कहा है कि चौदह राजलोक के समग्रलोक में पंचास्तिकायरूप पदार्थ जिस प्रकार सर्वत्र - सभी क्षेत्रों में व्याप्त है - अर्थात् धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय तथा जीवास्तिकायादि - पंचास्तिकाय पदार्थ जिस प्रकार समस्त चौदहराजलोक के कोने . कोने में सर्वत्र व्याप्त है, उसी प्रकार यह 'पंचमंगल महाश्रुतस्कंध' स्वरुप नवकार महामंत्र सभी आगमों में सर्वत्र व्याप्त है । - यह है चौदह पूर्वों का सार - निष्कर्ष 'समरो मंत्र भलो नवकार'... नामक महिमास्तोत्र की एक पंक्ति में इसे चौदह पूर्वों का सार - निष्कर्ष बताया गया है । पूर्व यहाँ पहले अथवा भूतकालवाची अन्य अर्थों में अभिप्रेत नहीं है । 'पूर्व' जैन धर्म में आगम ग्रंथो को प्रदत्त एक नाम हैं । पूर्व यहाँ आगमग्रंथवाची संज्ञा है । किसी निश्चित् परिमाण श्याही से लिखित विशालकायआगम ग्रंथ को पूर्व की संज्ञा दी गई है । विश्वविख्यात श्री कल्पसूत्र नामक महापवित्र जिनागम में १४ पूर्वों का वर्णन करते हुए मानस चित्र पूर्वक 1
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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