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________________ God is only adirector of the world. भगवान सृष्टि का बनाने वाला नहीं है न व नाश करने वाला है, वह तो मात्र दृष्टा है - जगत कैसा है मात्र यह बताने वाला है । इस जगत में क्या है ? कहाँ क्या है ? कैसा है ? किस प्रकार है ? किस स्वरुप में है ? और इस जगत में क्या क्या परिवर्तन होते हैं ? किस प्रकार होते हैं ? कौन क्या करता हैं ? जड़ क्या है ? चेतन क्या है ? यह सृष्टि किस प्रकार बनती है ? इसमें परिवर्तन किस प्रकार होते हैं ? जीव-अजीव जड़ चेतन के संयोग वियोग किस प्रकार होते हैं ? कौन करता है ? और कौन बनाता है ? आदि की विचारणा जैन दर्शन ने बहुत ही स्पष्ट रुप से करके, एक वास्तविक सत्य को जगत के समक्ष प्रस्तुत किया है । यह सब समझने के लिये सर्व प्रथम सम्पूर्ण सृष्टि समझाने वाले - बताने वाले परमात्मा का सर्वज्ञ के रुप में सच्चा स्वरुप समझना आवश्यक है । यद्यपि विस्तृत रुप से तो आगे समझाया जाएगा परन्तु यहां सामान्य रुप से संक्षेप में उपयोगी स्वरुप समझ लेते हैं क्यों कि भगवान में तो श्री कृष्ण अर्जुन को मुँह फाड़कर अपने मुँह में व्यापक विराट ब्रह्मांड का स्वरुप दिखाते हैं, जब कि सर्वज्ञ अरिहंत भगवान अपने अनंत ज्ञान से ब्रह्मांड का स्वरुप बताते हैं । - मनन्त ताSATISHA केवलज्ञानी सुवाउपानी मेछ.. सर्वज्ञ परमात्मा : ज्ञान आत्मा का प्रथम श्रेणी का श्रेष्ठ गुण है। ज्ञान आत्माजीव के सिवाय अन्यत्र कहीं भी नहीं रहता अतः आत्मा को पहचानने के लिये ज्ञानदर्शनादि चेतना 176 MXNIMIT
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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