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________________ पृथ्वी, पृथिव्यां औषधयः औषधिभ्योडिन्नम् अन्नाद् रेतः रेतसः पुरुषः । स वा एष पुरुषोऽन्नरसमयः' आत्मा से क्रमशः उत्तरोत्तर रुप से आकाश, वायु, अग्नि, पानी, औषधि अन्न, वीर्य, और पुरुष उत्पन्न होता है । यह पुरुष अन्नरसमय है । ऐत्तरीयोपनिषद में - सर्व प्रथम मात्र आत्मा की सत्ता स्वीकार की गई है। फिर 'तस्याभितप्तस्य मुखं निरभिद्यत - यथा ॐ । - ' उसके सामने विचारपूर्वक देखने पर अंडे की भाँति उसका मुख खुल गया फिर उसमें से ॐ शब्द उत्पन्न हुआ और शब्द में से अग्नि प्रकट हुई, फिर नाक खुला जिसमें से श्वास आने जाने लगा जिससे आकाश बना, आँखे खुल गई और उनमें से प्रकाश, कान से शक्ति की उत्पत्ती हुई। तदुपरान्त चमड़ी बढ़ी उस पर बाल उगे । उससे घास - पत्ते वृक्ष आदि उत्पन्न हुए । छाती से बुद्धि, बुद्धि से चंद्र, फिर नाभी से अपान और अपान से मृत्यु उत्पन्न हुई। लिंग के वीर्य से पानी उत्पन्न हुआ आदि एक एक अंग उस ब्रह्मात्मा में खुलता गया और एक एक वस्तु बनती गई । इस प्रकार सृष्टि उत्पन्न होने के संबंध में बहुत ही लम्बी कहानी इस में है । - - इस प्रकार वेदों में कुछ कुछ मतभदों के साथ सृष्टि की उत्पत्ति बताई गई है और उपनिषद देखें तो बहुत है, इन में से अनेक में सृष्टि -विषयक वर्णन उपलब्ध होता हैं, परन्तु उन में भी परस्पर भिन्नता प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। बृहदारण्यकोपनिषद में अलग प्रकार से बात कही गई हो तो तैत्तिरीय में उससे बिल्कुल ही भिन्न प्रकार की बात कही गई है । कई के तो पाठ भी बहुत लम्बे हैं। स्थान और पृष्ठोंकी संख्या के भय से यहाँ सब को उद्धृत करना शक्य नहीं है । यह तो हजारोंपृष्ठों के स्वतंत्र ग्रंथ का विषय है । हिंदू धर्म में सृष्टि की विचारणा इस प्रकार की गई है और षड्दर्शन में भी सृष्टि के संबंध में जो जो मान्यताएँ है वे भी हम देख चुके हैं । इनके अतिरिक्त इस्लाम और ईसाई मत भी सृष्टि के विषय में अपनी स्वतंत्र विचारधारा रखते हैं जिनका भी संक्षेप में यहाँ उल्लेख करना उपयुक्त रहेगा । ईसाई धर्मानुसारी बाईबल की मान्यता : ईसाई धर्म का पवित्र धर्मग्रंथ एक मात्र बाईबल है । बाईबल में सृष्टि - विषयक वर्णन मिलता है । ईसाई धर्म भी ईश्वर को जगत्कर्ता मानता है । ईश्वर ही सृष्टि उत्पन्न करता है, सृष्टि की रचना करता है आदि बातें बाईबल में पाई 161
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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