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________________ मुक्त नहीं करता । तंदुल मत्स्य इतना सूक्ष्म है कि वह स्वयं कुछ भी खाने में असमर्थ है, फिर भी विचार धारा से मानसिक पाप इतना अधिक उर्पार्जन कर बैठता है कि उसे सातवी नरक में जाना पड़ता है । __ जिस प्रकार प्रसन्नचन्द्र राजर्षि भी मन के कारण विचार धाराओं में ही मानसिक युद्ध में ऐसे निमग्न हो गए कि सातवी नरक में जाने की तैयारी हो गई, परन्तु तत्काल उन्हें होश आ गया । उनकी आत्मदशा पुनः जागृत हुई और पश्चात्ताप की धारा में पुनः अग्रसर हुए ...बस ... फिर तो आवश्यकता ही किस बात की थी ? सातवी नरकगमन से तो बचे ही साथ ही साथ कुछ ही देर में केवलज्ञान भी प्राप्त कर लिया और वे सर्वज्ञ केवली बन गए । - ऐसा है यह मन । कर्म बंधन में भी यह मन ही कारण है और कर्मक्षय से मोक्ष प्राप्ति में भी यह मन ही कारण है । सातवी नरक में भी यह मन ही ले जाता है और मोक्ष में भी यह मन ही ले जाता है । अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के कार्य मन के ही हैं । अतः मन बुरा ही है अथवा अच्छा ही है - ऐसा निर्णय . न कर बैठें । मन तो जड़ है - यह अच्छा भी है और बुरा भी है । सन्मार्ग पर मोड़ो और कर्म निर्जरा करवाए तो मन सर्वोत्तम है । इसी प्रकार यदि मन को कुमार्ग की ओर मोडो और कर्मबंध करवाओ तो यह निकृष्टतम है ।। - ऐसे. मन को कैसे मोडे ? इसका क्या उपाय है ? इसकी शोध हमें करनी होगी । यह उपाय बहुत ही स्पष्ट और सरल है, बिल्कुल सादा है। मन जो शब्द है, उसे ही उल्टे अक्षर करके देखें तो पता चलेगा कि आगे का 'म' पीछे और पिछला 'न' आगे रखने पर क्या शब्द बनता है । संस्कृत भाषा में मनः का विपर्यास नमः और नमः का विपर्यास मनः होगा। इस प्रकारवर्ण विपर्यास करके अर्थात् पीछे का अक्षर आगे और आगे का अक्षर पीछे रखने से शब्द को विपरीत करके देखने से पता चलेगा कि नमस्कार शब्द का ही प्रथम नम शब्द है और इस नम को ही उल्टा करने पर मन शब्द बनता है । यदि मन को उल्टा किया जाए तो नम बनता है, अतः इन दोनो शब्दों को देखकर मिलाकर भली प्रकार विचार करें तो एक दूसरे के ये सहयोगी लगते हैं या नहीं? ऐसा लगता है कि मन को साधने के लिये 'नम' की साधना अर्थात् नमस्कार करने की साधना करनी पड़ती है । नमस्कार शब्द के मूल में नम धातु नमन 123
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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