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________________ वास्तव में तो खमासमण अर्थात् क्षमाश्रमण होता है। खमासमण प्राकृत भाषा का शब्द है। प्राकृत भाषा में 'श्र' और 'श' का उपयोग नहीं होता, अर्थात् मूर्धन्य ‘ष और तालव्य श इन दोनों का प्राकृत भाषा में उपयोग नहीं होता है । इनका उपयोग संस्कृत भाषा में अवश्य होता है । संस्कृत भाषा में 'श' ष और स तीनों ही सकार प्रयुक्त होते हैं, जब कि प्राकृत भाषा में मात्र एक दन्त्य सकार ही प्रयुक्त होता है और 'श्र' में 'स' और 'र' संयुक्त हैं, अतः ऐसे संयुक्ताक्षर जिनमें विजातीय का मिश्रण होता है ऐसे संयुक्त अक्षर प्राकृत भाषा में प्रयुक्त नहीं होते हैं। वहाँ श्री के स्थान पर “सिरि" का प्रयोग होता है । संस्कृत क्षमा + श्रमण = क्षमाश्रमण शब्द हैं । क्षमा के धारक श्रमण अर्थात् साधु महात्मा को वंदन करना है । खमासमण वंदन सूत्र होने से इसे थोभ वंदन सूत्र कहते हैं, परन्तु आद्य शब्द प्रथमाक्षरी नामकरण की पद्धति के अनुसार इसका नाम खमासमण हो गया है । उच्चारण में अपभ्रश करें तो यह 'खमासणुं' कहलाता है । १२ खमासमणे देने हैं ऐसा बोला जाता है । वास्तव में थोभवंदन को “पंचांग प्रणिपात" कहते हैं । पाँच अंग झुकाकर नमाकर दिये जाने वाले वंदन को पंचांग प्रणिपात कहते हैं । ये पंचांग अर्थात् पाँच अंग इस प्रकार हैं दो पाँव, घुटने, दो हाथ-कोहनी और एक मस्तक । इस वंदन में ये पांचो ही अंग क्रमशः झुकते जाते हैं और वंदन किया जाता है, परन्तु इस प्रकार के वंदन में भी प्रथम फिट्टा वंदन की मुद्रा आ जानी चाहिये । पंचाग प्रणिपात को ही खमासमणा कहते हैं । यह सूत्र और इसका अर्थ इस प्रकार है - इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए मत्थएण वंदामी । इसे थोभवंदन सूत्र कहते हैं । इस के अर्थ का वर्णन करें तो इस प्रकार होता है - 'हे क्षमादि गुणों के धारक श्रमण अर्थात् साधु भगवंत ! शक्तिपूर्वक आपको सुख-शाता पूछकर अविनय आशातनादि पापवृत्ति का त्याग करके मस्तक झुकाकर आपको वंदन करता हूँ । शरीर के पाँचों ही अंगों क्रमशः पाव हाथ सिर 100
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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