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________________ अभिमान अध: पतन करवाता है, नमस्कार ऊर्ध्वगमन करवाता है । यदि हम अभिमान करेंगे तो नीचे गिरेंगे - हमारा अध: पतन होगा, और साथ ही साथ हमारे में से नमस्कारवृत्ति का अभाव हो जाएगा । नम्रता का भाव, नमो का गुण और नमस्कार वृत्ति यदि जीवन में से निकल गए तो निष्प्राण मृतक जैसी हमारी स्थिति हो जाएगी । हमारे घर में घुस गया यदि अभिमान अधिक सताता हो, और यह चोर है ऐसा भान हमें हो गया हो तो शीघ्रातिशीघ्र हमें नम्रता के नमो भाव से इसे बाहर निकालने का प्रयत्न करना चाहिये । नमो भाव में जागृति है - सावधानी है यह आत्मा की उपयोग दशा को जागृत करता है, जब कि अभिमान में क्लेश - कषाय की जागृति है अनुपयोग दशा प्रमाद है । नमो भाव में आत्मा की स्वभावदशा की रमणता है, जब कि अभिमान विभावदशा की वृत्ति है । नमो भाव में जीव कर्म की निर्जरा करता है, पुण्योपार्जन करता है, जब कि अभिमानवृत्ति में जीव कर्म बंधन करता है, पापोपार्जन करता है। शास्त्रों में कहा गया है कि नमस्कार से भी पुण्य बंध होता है । नमस्कार से पुण्य - बँध होता है : पुण्य शुभआश्रव है । शुभ प्रवृत्ति करने वाले जीव पुण्योपार्जन करते हैं। पुण्योपार्जन करना और उपार्जित पुण्य को भोगना - दोनों ही भिन्न भिन्न बातें हैं । पुण्य का फल अवश्य ही सुख रुप हैं, परन्तु पुण्य का फल प्राप्त करने के लिये शुभाश्रयी प्रवृत्ति करके पुण्योपार्जित करना भी इतना ही आवश्यक है । यह ४२ प्रकार से भोगा जाता है, परन्तु यदि बेंक में जमाराशि न हो तो रकम कैसे निकाली जा सकती है ? अतः पुण्य के फल की इच्छा रखने वाले का पुण्योपार्जन करना प्रथम आवश्यक है । शास्त्रों में पुण्योपार्जन करने के मुख्य नौ प्रकार - मार्ग बताए गए हैं । 88
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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