SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यदि यह राजा भी किसी को नमस्कार करे, तो जिसे नमस्कार करे वह बड़ा और उसकी तुलना में राजा छोटा । संयोगवश एक दिन सम्राट श्रेणिक गजारूढ होकर राजमार्ग पर से निकल रहे थे, भव्य चतुरंगी सेना आदि से परिवृत्त थे. इतने में एक त्यागी मुनि महात्मा को राजमार्ग पर आते देखकर सम्राट अपने हाथी से नीचे उतरे और उन्होंने उन महात्मा को नमन-वन्दन किया । यह देखकर फरशाल तो दिग्मूढ सा हो गया । सोचने लगा - कौन बड़ा ? राजा के पास कितना ठाठ है - वैभव है ? जब कि इन महात्मा के पास तो कुछ भी नहीं तो क्या समझा जाए ? परन्तु पुनः पिताश्री ने नमस्कार का नियम याद दिलाया । मुनि महात्मा को उपाश्रय में अपने गुरु को वंदन करते हुए देखा । गुरू उपाध्यायजी महाराज को वन्दन कर रहे थे और फिर उपाध्यायजी महराज को आचार्य भगवंत को नमन-वंदन करते देखा । यह देखकर उसे लगा.कि वास्तव में नमस्करणीय व्यक्ति कितने हैं, कितने महान् व्यक्ति हैं ? अंत में उसने आचार्य भगवंत को समवसरण में विराजमान त्रिलोक के नाथ तीर्थंकर महावीर परमात्मा को प्रदक्षिणा सहित वंदन करते हुए देखा, अतः फरशाल समझ गया कि ये भगवान ही सब से महान् होने चाहिये । फरशाल ने प्रभु को. नमन-वंदन करके पूछा - प्रभु ! मैं आपकी सेवा करने का इच्छुक हूँ । भगवंत ने कहा ! हे भाग्यशाली ! मैं तो क्षत्रिय वेष भूषा, तलवार शस्त्रादि से सज्ज व्यक्ति द्वारा सेवित नहीं होता, बल्कि रजोहरण, मुहपत्ति धारक से सेवित होता हूँ । अतः इस प्रकार जो सेवित है वही योग्य है । व्यवहार विनय का नमस्कार भी आत्मा को आज कितने उच्च कोटि के परमार्थ के मार्ग पर लाने में सफल हुआ ? सरलं-विनीत आत्मा फरंशाल ने सर्वस्व का परित्याग कर समवसरण में प्रभु के पास. दीक्षा अंगीकार कर ली । बड़े ही विनीत भावपूर्वक प्रभु की सेवा भक्ति आदि करके फरशाल मुनि ने सद्गति प्राप्त की आत्मोद्धार साध लिया । महत्ता किसकी ? अरिहंत की या 'नमो' की ? नवकार महामंत्र में ‘णमो अरिहंताणं' - इस प्रकार पद-रचना की गई है और इसी प्रकार पाँची ही परमेष्ठियों को नमस्कार करने में ‘णमो' पद आदि में रखा गया है, और फिर अरिहंतादि के नाम रखे हैं । भावार्थ भी इसी प्रकार 82
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy