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________________ ॐ ३- २ . . अतः ये जड-पुद्गल साधन हैं । जड अपने आप स्वयं क्रिया नहीं करता है । निष्क्रिय है। अतः यहाँ पर "से" शब्द से ज्ञान की क्रिया का कर्ता चेतनात्मा सिद्ध होता है। आँख-कानादि इन्द्रियाँ मात्र करण अर्थ में सिद्ध होती हैं। __ ऐसी इन्द्रियाँ अपने-अपने किये हुए कर्मानुसार जीवों को कम ५ ----- ज्यादा प्राप्त होती हैं। पाँच इन्द्रियाँ संपूर्ण हैं। इसमें से कम होने पर विकलेन्द्रियता आती है । इन्द्रियों की परिपूर्णता गुणात्मक एवं संख्यात्मक दोनों अवस्था में प्राप्त होनी-यह भी प्रबल पुण्योदय की निशानी है। अपने-अपने विषयों का ज्ञान आत्मा तक पहुँचाने का काम इन्द्रियाँ करती है । १) स्पर्शेन्द्रिय-अंग-चमडी-त्वचा जो सारे शरीर पर लगी हई है वह ... ठंडा-गरम (शीत-उष्ण), स्निग्ध-रुक्ष, गुरु-लघु एवं मृदु-कर्कश इन ८ स्पर्शों का अनुभव करती है । अनुभव ज्ञान है । जैसे हवा नहीं दिखाई देती है फिर भी चमडी उसके स्पर्श से हवा के अस्तित्व तथा स्वरूप का भान (ज्ञान) कराती है । आँख से देखने की क्रिया होती है और चमडी से स्पर्श द्वारा ज्ञान होता है । जब वायु का रूप-रंग नहीं है तो वह आँखों से दिखाई नहीं देती है। अतः स्पर्शगुण का ग्राहक हमारी स्पर्शेन्द्रिय बनी। .. रसना-जीभ, स्वाद का ग्रहण करती है । इसलिए रसनेन्द्रिय-जीभ कहलाती है । कडवा (कटु), तीखा, तूरा, खट्टा और मीठा ये मुख्य पाँच रस हैं । खारे रस को मीठों के समूह में या कटु के अन्तर्गत उसकी प्रारंभिक अवस्था में समा लिया है । गंध- १) सुगंध, और २) दुर्गंध ऐसे २ प्रकार की है, जिसे नासिका ग्रहण करती है । चक्षु इन्द्रिय का काम रूप-रंग ग्रहण करने का है । काला, सफेद, लाल, पीला और हरा इन पाँच रंगों के द्वारा चक्षुइन्द्रिय वैसे पदार्थों का ग्रहण करती है । आत्मा रूपी नहीं है। इसलिए आत्मा के रूप-रंग नहीं होते हैं। अतः आत्मा दृष्टिगोचर भी नहीं होती है। आँखों से देखी नहीं जाती है। कान ध्वनि-शब्द को ग्रहण करनेवाली इन्द्रिय है । सचित्त-अचित्त-मिश्र तीनों प्रकार के शब्दों को कान से सुनते हैं अतः पाँचवी इन्द्रिय को श्रवणेन्द्रिय कहते हैं। ये डार्विन के विकासवाद की समीक्षा २३१
SR No.002482
Book TitleAadhyatmik Vikas Yatra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherVasupujyaswami Jain SMP Sangh
Publication Year1996
Total Pages496
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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