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________________ के भवों की गिनती की जाती है । तात्पर्य यह कि सम्यक्त्व प्राप्ति से मोक्ष गमन तक के भवों की गणना प्रधान रूप से होती है। यही गणना संभव है । लेकिन सम्यक्त्व प्राप्ति के पूर्व का काल जो अनादि मिथ्यात्व का था, उस काल की गणना एवं उस मिथ्यात्व के काल में हुए भवों की गणना करना कदापि सम्भव नहीं है । इसका कारण यह है कि अनादि मिथ्यादशा में काल भी अनन्त बीता और भव भी अनन्त बीते हैं। एक तरफ तो दोनों की संख्या अनन्त की है और दूसरी तरफ से अनादि है । अतः ऐसे अनादि, अनन्त संसार काल एवं भवगणना की संख्या में गणना करना असंभव सा है। साथ ही निरर्थक भी है। इसलिए शास्त्र का यह नियम सही है कि भवों की गणना सम्यक्त्व प्राप्ति से की जाती है, और मोक्ष गमन तक के अन्तिम भव तक के भवों की गणना की जाती है। इसी नियम के आधार पर चरम तीर्थंकर प्रभु महावीर स्वामी के २७ भवों का होना आगम में वणित है, यद्यपि भगवान महावीर स्वामी के अनन्त भव संसार हुए हैं, न कि केवल २७ भव । सम्यक्त्व प्राप्ति के पूर्व-काल में भगवान महावीर की आत्मा भी अनन्त पुद्गल परावर्तकाल के अनादि अनन्त संसार में चार गति एवं पांच जाति के ८४ लाख जीव योनियों में परिभ्रमण करती हुई, अनन्त भव कर चुकी थी। ये अनन्त भव (जन्म) अनादि मिथ्यात्व की कक्षा में हुए थे। अतः इनकी गणना व्यर्थ होने से नहीं की गई है । लेकिन सम्यक्त्व प्राप्ति से मोक्षगमन तक के भवों की गणना की गई है, वह २७ भवों की हैं। भगवान महावीर की आत्मा ने प्रथम भव-नयसार के रूप में पूर्व में बताई हई प्रक्रिया से सम्यक्त्व प्राप्त किया था। उन्होंने अधिगम मार्ग से साधु-मुनि महाराज के उपदेश से सम्यक्त्व पाया था। नयसार के रूप में प्रथम भव में जो सम्यक्त्व के बीज बोए गए थे, वे ही अंकुरित एवं पल्लवित होते हुए आगामी भवों में फलदायी बने । अतः २७ वें भव में वे मोक्ष में गए। इसी तरह प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की आत्मा धनसार्थवाह के प्रथम भव में अधिगम विधि से धर्म घोष-सरि आचार्य भगवान के दिए गए धर्मोपदेश श्रवण से सर्व प्रथम सम्यक्त्व प्राप्त करती है। सम्यक्त्व प्राप्ति के कारण ही इसे प्रथम भव माना गया है। इसके बाद की संसार यात्रा में १३ भव करके वे ऋषभदेव प्रभु कर्म की गति न्यारी
SR No.002481
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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