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________________ दोनों ही आत्माएं समान हैं, परन्तु दो के बीच जो अन्तर है वह विशेषण ने समझाया है । परम उसे कहेंगे जो सर्वश्रेष्ठ, सर्वोपरी, सर्वोत्तम है । ऐसी सर्व कर्म रहित, सर्व गुण सम्पन्न-सर्वज्ञ-वीतरागी आत्मा परमात्मा कहलाती है। ठीक इससे विपरीत कर्म संयुक्त एवं गुण रहित आत्मा पामरात्मा कहलाती है। परमात्मा-पामरात्मा के लिए एक उच्च आदर्श है । अतः पामरात्मा को परमात्मा ही का आलंबन लेना चाहिये । जैसे समुद्र में पार उतरने के लिये हम लकड़ी की नाव का सहारा लेते हैं, ठीक वैसे ही पामरात्मा को संसार समुद्र से पार उतरकर परमधाम-मोक्ष में पहुँचने के लिए परमात्मा का सहारा-आलंबनरूप है । परमात्मा पूज्यनीय-दर्शनीय-वंदनीय-चिन्तनीय है। अतः पामरात्मा को उनका पूजक-दर्शक-वंदक-चिंतक बनना चाहिए। परमात्मा भगवान है, और पामरास्मा भक्त है। भक्त को भगवान की भक्ति करनी चाहिए । भक्ति की प्रक्रिया में प्रभुदर्शन प्राथमिक क्रिया है। तत्पश्चात आगे पूजा, भावना, ध्यानादि है। चक्षु इन्द्रिय के अभाव में एकेन्द्रिय-विकलेन्द्रिय की कक्षा में कृमि-कीट-पतंग के अनेक जन्मों में आत्मा परमात्मा का दर्शन नहीं पा सकी । चक्षु इन्द्रिय की प्राप्ति के कई जन्म नरक एवं तिर्यंच गति में हुए, परन्तु वहां भी प्रभुदर्शन दुर्लभ रहा । ८४ लक्ष जीव-योनियों में मनुष्य गति एवं स्वर्गीय देवगति में परमात्म दर्शन, पूजा, भक्ति आदि सुलभ रही । मनुष्य जन्म में मिली हुई चक्षु आदि सभी इन्द्रियों का प्रभुदर्शन. पूजा, भक्ति आदि में सदुपयोग करके इन्द्रियों की सार्थकता सिद्ध करनी चाहिए । ऐसी अभिव्यक्ति एक श्लोक में इस प्रकार की गई है-- अद्य प्रक्षालितं गावं नेत्रे च विमलीकृते । मुक्तोऽहं सर्वपापेभ्यो, जिनेन्द्र ! तव दर्शनात् ॥ ___ एक दर्शक आत्मा प्रभुदर्शन करके अपनी धन्यता को इस श्लोक के शब्दों में प्रकट कर रही है । हे जिनेश्वर भगवान ! आपके दर्शन करने से मैं ऐसा कहता हूं कि आज मेरा शरीर पवित्र हो गया है, मुझे मिली हुई आँखें विमल (निर्मल) हो गई हैं, मैं सर्व पापों से मुक्त हो गया हूँ। अद्याभवत् सफलता नयनद्वयस्य, देव ! स्वदीय घरमामुजवीक्षणेन । अब बिलोकतिलकं प्रतिभासते मे, संसारवारिधिरयं बुलुकप्रमाणम् ॥ कर्म की गति न्यारी
SR No.002480
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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