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________________ दशवैकालिक सूत्र के आधार पर १. धर्म सर्वोत्तम मंगल है। अहिंसा संयम और तप धर्म का स्वरूप है। ऐसे धर्म में जिसका मन सदा लीन रहता है, उनको देवता भी नमस्कार करते हैं । २. इच्छा अाकाश जैसी अनन्त है। अतः जहाँ इच्छा, तृष्णा या वासना है वहाँ अतृप्ति, शोक और खेद है। ३. त्याग जितना व्यक्तिगत आध्यात्मिक विकास में सहायक है उतना ही समाज, राष्ट्र और विश्व के लिए उपकारक है। ४. सद्धर्म का प्राचरण करने का फल मोक्ष प्राप्ति है। कर्म बंधन से सर्वथा मुक्त हुए बिना कोई जीवात्मा मोक्ष सुख नहीं प्राप्त कर सकता। ____५. जिस प्रकार कायिक संयम साधक के लिए अनिवार्य ओर आवश्यक है, उसी प्रकार वचन शुद्धि भी साधक के लिए आवश्यक है। ६. क्षमा, समानता, नम्रता रखना, बैरी को भी वल्लभ गिनना, अन्य के दुर्गधों को उपेक्षा करना, स्वावलम्बी और संयमी बनना और त्याग करना—ये महान सद्गुण है। ७. क्रोध, मूर्खता, अभिमान, कुवचन, माया-ये सज्जनता के शत्र हैं। ये दूर्गण सच्चे विनय भाव को उत्पन्न नहीं होने देते जिससे जीवात्मा दुःख खेद, क्लेश, शोक और वैर विरोध में सडता रहता है । उसको शांति प्राप्त नहीं होती। ८. मनुष्य जिसके परिचय में आता है, जिसकी गुलामी करता है, जिसकी पूजा करता है, वैसा ही उसका मन और उसके विचार बनते हैं और अन्त में वह वैसा ही बन जाता है। संसर्ग का असर अवश्य पड़ता है। अतः महापुरुषों ने सत्पुरुषों के संग का अपार महात्म्य बताया है। नम्र सूचन इस ग्रन्थ के अभ्यास का कार्य पूर्ण होते ही नियत समयावधि में शीघ्र वापस करने की कृपा करें.
SR No.002480
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherJain Shwetambar Tapagaccha Sangh Atmanand Sabha
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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