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________________ हो परन्तु पांचवां पुरुषार्थ यदि ठीक न हो तो, अर्थात किसान आलसी हो. पुरुषार्थ करने में प्रमादी हो तो क्या होगा ? सब कुछ होते हुए भी खेती नहीं हो पायेगी । काल-स्वभावादि सब अनुकूल हो और एक भी विपरीत हो तो भी कार्य नहीं होगा। तात्पर्य यह है कि खेती के एक कार्य में वर्षाऋतु का काल, बीज में अंकुरोत्पादक स्वभाव, अतिवृष्टि-अनावृष्टि न हो, बाढादि का न आना ऐसी सानुकूल नियति, पूर्वोपार्जित किसान का भाग्य जिससे जमीनादि अच्छी उपजाऊ मिलना, और अन्त में किसान का अप्रमत्त पुरुषार्थ, पूरे ध्यान से उत्साह-उमंग पूर्वक कार्य करना ये पांचों कारण सहकारी रूप से इकट्ठे होंगे तब एक खेती का कार्य होगा। ठीक इसी तरह समस्त जगत के सभी कार्य होंगे । इन पांचों कारणों का समुदाय रूप से शामिल होकर रहना अनिवार्य है । एक की अनुपस्थिति कार्य में बाधक बन जाएगी। इसी तरह उदाहरणार्थ मोक्ष प्राप्ति एक कार्य है । इसके लिए भी पांचों कारणों का होना अनिवार्य है। जैसे-मोक्ष प्राप्ति में चरमावर्त काल का होना, और तथाभव्यत्व की परिपक्वता होनी चाहिये । मनुष्य भव चाहिये । धर्म सामग्री प्रादि देने वाला पूर्वकृत कर्म (पुण्य) चाहिये । इन सबके होते हुए भी स्वयं जीवात्मा चारित्र प्राप्त कर मोक्षमार्ग पर अग्रसर होने के लिए कर्मक्षय का पुरुषार्थ करे यह भी आवश्यक है। इन कालादि पांचों कारणों के समुदाय रूप से सहयोगी होने से ही मोक्ष प्राप्ति का कार्य सिद्ध होगा । अन्यथा एक की भी कमी कार्य सिद्धि में बाधक बन जाएगी। पांवों के स्वीकार में सम्यक्त्व “एकान्ता सर्वेऽपि एककाः” कालः, स्वभावः, नियति, पूर्वकृत्, पुरुषकारणरुपा: मिथ्यात्वम् । त एव समुदिताः परस्पराऽजहद्वृतयः सम्यक्त्वरुपतां पतिपद्यन्ते" ॥ सिद्धसेन दिवाकरसूरि महाराज विरचित सन्मति ' तर्क महाग्रन्थ के तीसरे कांड की ५२वीं गाथा की टीका में पूज्य अभयदेवसूरिजी महाराज कहते हैं कि-ये कालादि सभी एकान्त रूप से एक एक स्वतन्त्र कारण माने तो मिथ्यात्व कहलाएगा। उन्हीं पांचों को समुदाय रूप से परस्पर अजहत्वृत्ति से स्वीकार करें तो अर्थात सापेक्षभाव से पांचों को मानें तो ही सम्यक्त्वअर्थात् सही ज्ञान होगा। चावल गरम पानी में डालते ही सिगडी पर पक नहीं जाते । उसमें भी काल कर्म की गति न्यारी १०९
SR No.002478
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 02 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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