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________________ नूतन जलधररुचये गोप वधूटी दुकूल चौराय । तस्मै कृष्णाय नमः संसार महीरुहस्य बीजाय ।। उपरोक्त दो श्लोकों में एक में शंकर की स्तुति की है। ‘भवो' शब्द शंकर के लिए प्रयुक्त है। उनके विशेषण के लिए आगे का पद है - 'लीला ताण्डव पण्डितः' अर्थात् जो ताण्डव लीला करने में कुशल है-पण्डित है। ताण्डव लीला अर्थात् संहार कार्य में, अर्थात् सृष्टि के प्रलय में जो पण्डित है-कुशल है-जानकार है। शंकर के जिम्मे सृष्टि के प्रलय की जिम्मेदारी है। वे अन्त में नटराज का रूप लेते हैं। उल्टे घड़े पर एक पैर पर खड़े रहकर हाथ में प्रलय का डमरू लेकर नाचने लगेंगे तब सारी सृष्टि का संहार हो जाएगा। प्रलय बड़ा भयंकर विनाशकारी होगा समस्त सृष्टि का एक तिनका भी नहीं बचेगा। यह सोचते हए कभी आश्चर्य लगता है कि क्या इसे लीला समझना ? ईश्वर की तो मानों लीला होती होगी लेकिन अनंत जीवों की जीवन लीला ही समाप्त हो जायेगी उसका क्या ? अनन्त जीवों को मारने का पाप किसके सिर पर ? चलो आप तो कहते हैं ईश्वर को पाप कभी लगता ही नहीं, भले वे पाप करे तो भी वह लीला कही जाएगी। दूसरे श्लोक में श्री कृष्ण को नमस्कार किया गया है । वहां श्री कृष्ण के रूप में 'गोप वधूटि दुकूल चौराय' यह विशेषण रखा है। अर्थात् स्नान करने के लिए गोपीयां जब सरोवर या नदी में उतरकर निर्वस्त्र होकर स्नान करने में मस्त हो गई तब उनके बाहर रखे हुए कपड़े चुराने वाले श्री कृष्ण को मैं नमस्कार करता हूं। जिनको हम भगवान का दरजा देते हैं, क्या इन शब्दों से नमस्कार किया जाय? हां, यह तो भगवान की लीला है। इस उत्तर से क्या समाधान होता है ? भगवान ये कार्य करे तो लीला है। और यदि भगवान का ही भक्त किसी स्नान करती हुई स्त्री के वस्त्र चुराता है तो वह लीला नहीं-चोरी है। लोग उसे चोर-चोर, बदमाश कहीं का, कह कर पीटने लग जाते हैं। अच्छा तो ऐसे समय में यदि वह चोर यह कह दे कि मैं तो लीला करने आया हूँ। जैसा भगवान ने किया था, वैसा अनुकरण करने आया हूँ तो फिर क्या होगा? यदि इस कार्य को चोरी कही जाती हो तो ऐसा कार्य जो भी कोई करे वह चोर ही कहलाता है? एक कार्य को एक ने किया तो लीला और वही कार्य कोई सामान्य मानवी करे तो चोरी । वस्त्र चोर, मक्खन चोर के विशेषण लगाकर हम किसी को भगवान कह सकते हैं? परन्तु मनुष्य यदि उस कार्य को करे तो वह भगवान नहीं बन सकता वह चोर कहलाएगा। ऐसा अन्याय क्यों ? भगवान का आदर्श हमारे लिए कितना ऊंचा होना चाहिए ? बेदाग सर्वथा दाग रहित, आदर्श निष्पाप-निष्कलंक जीवन होना चाहिए तो ही वह भक्त के लिए अनुकरणीय अनुसरणीय बनेगा। अन्यथा ‘बाप अण्डे खाए और बेटे को ना कहे' यह कैसे चरितार्थ होगा ? क्या भगवान का ऐसा स्वरूप करके हमने भगवान के स्वरूप को (७१) -कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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