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________________ ही बना था। उसी तरह बांया पैर घुटने तक ही बना था और दाहिना पैर एडी तक भी नहीं बना था। यह कैसा आश्चर्य? इतना सुन्दर बालक होते हए भी यह विचित्र अवस्था ? विपाक सूत्र नामक ११ वें अंगसूत्र में दुःख विपाक के पहले अध्ययन में मृगापुत्र का जो वर्णन किया गया है वह रोम रोम खड़े कर दे ऐसा आश्चर्यकारी है। ____एक मां अपने १४ महिने के बच्चे को लेकर आई और कहा महाराज ! डॉक्टर ने कहा है कि यह मुश्किल से एक दिन भी नहीं जीएगा। सारे शरीर में कैन्सर की गांठे भर गई हैं। मुंह से पानी भी नहीं उतरता है और पेशाब भी नहीं होता । मौत का इन्तजार करता हुआ वह सुन्दर-सुरूप बालक दिल में दया का मानों स्रोत बहा रहा हो । पर हाय निःसहाय निरुपाय बालक ने दूसरे ही दिन दम तोड़ दिया । यह कैसी विचित्रता है। पश-पक्षियों की सष्टि में दष्टिपात करने पर दनिया भर की विचित्रता दिखाई देती है। मूक प्राणियों की यह विचित्रता, संसार में देखते ही रहो...बस...देखने के सिवाय और कोई उपाय ही नहीं हैं। बेचारे ऊंट का शरीर कैसा है ? अठराह ही अंग सभी टेडे मेढे। हाथी का शरीर इतना बड़ा भीमकाय है कि बिचारा भाग भी न सके। कुत्ते-बिल्ली की विचित्रता कुछ और ही है। खाने के हाथ भी नहीं है। बन्दर दो पैरों का खाने के लिए हाथ की तरह उपयोग भी कर लेता है। जलचर प्राणियों के न हाथ न पैर मछलियां अपने पंख से ही तैरती रहती है। पक्षी पंख से उड़ते हैं। किसी के सींग है, तो किसी के एक भी सींग नहीं, तो किसी के बारह सिंग पेड की जाली की तरह दिखाई देता हैं। पशु-पक्षीयों की प्राणी सृष्टि में कीडेमंकोडे तक देखने जाएं तो आश्चर्य का पार नहीं रहेगा। कीसीके कान ही नहीं है तो कीसी को आंख ही नहीं है। कोई जीवन भर आंख के बिना ही काम चलाते हैं । इन्द्रियों का भी विकल बिचारे विकलेन्द्रिय जीव किसी कदर जीवन बिता रहे हैं। सभी जीव आहारादि की संज्ञा के पीछे जीवन बिता रहे हैं। मानों बहते पानी की तरह सभी का जीवन बीतता जा रहा है। फिर भी दुःख से मुक्ति कहां हैं ? अगले जन्म में वही परम्परा चलती रहती है। न तो भवचक्र का अन्त है, न ही जन्म-मरण के चक्र का अन्त है, और न ही संसार का अन्त । न ही भव भ्रमण का अन्त है। किसी के लिए तो हम कहते हैं - 'वन्स मोर प्लीज' फिर से दुबारा गाइए । दुबारा बोलिए। आप तो दो घंटे से भी ज्यादा बोलते ही रहिए । और किसी के लिए गधा कहीं का बड बड करता ही रहता है। बैठता भी नहीं है। किसी का मधुर सुस्वर मीठा कंठ पसंद आता है। मुग्ध कर लेता है। तो किसी का स्वर भैसासूर गर्दभराज का फटा हआ गला सुनने को जी नहीं चाहता। कोई कोयल जैसा तो कोई कौए जैसा । कौए और कोयल में भी क्या अन्तर है ? समान दिखनेवाले भी आसमान-जमीन का अन्तर कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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