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________________ कितनी नीची कक्षा में पतन ? 1 1 सोचिए ! अब क्या हालत होगी ? फिर उस निगोद के गोले में जाकर उत्पन्न हुआ । दुःख का फिर वही चक्र । फिर पलक भर में जन्म-मरण धारण करते ही जाओं अनन्तगुनी वेदना सहन करते ही जाओ। दूसरी बात यह है । अब निगोद के गोले से वापिस बाहर निकलने के लिए किसी के मोक्ष में जाने से निकलने का चान्स इस जीव को नहीं मिलेगा । निगोद के गोले में दो प्रकार के जीव है। एक तो वह जो पहले से निगोद के गोले में अनादि अनंतकाल से पड़ा ही था, जो बाहर निकला ही नहीं है उसे अव्यवहार राशि निगोद का जीव कहते हैं। तथा दूसरा वह जो निगोद में आया है, संसार यात्रा में अगणित जन्म-मरण धारण करके वापिस निगोद में आया है, संसार परिभ्रमण का व्यवहार जो करके आया है उसे व्यवहार राशी के जीव कहते हैं । निगोद के गोले में अन्य सब कुछ दोनों का समान हैं । परंतु सबसे बड़ा अंतर तो यह है कि - अव्यवहार राशी वाला जीव ही किसी के मोक्षगमन से बाहर निकल पाएगा। यह चान्स उसे ही मिलेगा । चूंकि हकदार वही है। परंतु जो पुनः गया है उसे यह मौका नहीं मिलेगा। किसी के सिध्द बनने से छुटकारा पाने का मौका एक बार मिल चुका था । संसार की यात्रा का प्रवासी बन चुका था। तो फिर ऐसे पाप कर्म क्यों किये ? क्यों वापिस इसी निगोद में आया ? अतः अब पुनः वैसा मौका नहीं मिलेगा । यदि पुनः पुनः इन्हे वापिस आये हुए को ही किसी के सिध्द बनने से बाहर निकलने का मौका दिया जाय तो जो अनादि अनंत काल से निगोद के गोले में पड़े हुए हैं वे फिर कैसे बाहर निकल पाएंगे ? उनका तो फिर नंबर ही नहीं लगेगा। वे तो बिचारे पड़े ही रहेंगे अतः किसी के मोक्ष में जाने से नियमित और निश्चय रूप से पहले के अव्यवहार राशिवाले जीव ही क्रमशः बाहर निकलेंगे । ऐसा शाश्वत नियम है । अतः संसार यात्रा से बाहर के व्यवहार में भटककर पुनः निगोद में आए हुए जीव स्वयं अकाम निर्जरा-अनिच्छा से भी कर्म क्षय करके, बाहर निकलने योग्य योग्यता प्राप्त करें । काफी प्रयत्न-पुरूषार्थ करके बाहर निकलें, यह उन्हें स्वयं को करना है । ऐसी व्यवस्था सर्वज्ञानियों ने देखकर बताई है । T कितने चक्रों में कहां तक परिभ्रमण ? मान लो कि व्यवहार राशीवाला जीव पुनःस्व पुरूषार्थ विशेष से बाहर निकला । पुनः वह ऊपर चढ़ने के लिए उसी क्रम से एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय के भवों करता हुआ आगे बढ़ा । फिर से तिर्यंच गति में घोड़े, गधे, हाथी, ऊंट आदि के जन्म धारण करता हुआ मनुष्य गति में आया, देवगति में जाकर देवी, देवता बना । आखिर वह देवगति भी संसार चक्र की ही गति है, इसलिए स्वर्ग से भी मृत्यु पाकर पुनः पशु-पक्षी के जन्म में जाता है, या हीरे, मोती, सोने, चांदी में जाकर उत्पन्न होता २९ कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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