SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेश से कोई जीव धर्मोपासना करके मोक्ष में जाय तब उसकी जगह एक जीव निगोद के गोले से निकलकर बाहर संसार के व्यवहार में आता हैं। इसी तरह दूसरा, तीसरा,चौथा.....संख्यातवां, असंख्यातवां तथा अनंतवां जीव मोक्षमें गया तो अनन्त जीव निगोद के गोले में से बाहर आएंगे। एक गोले में अनन्त जीव है और ऐसे असंख्य गोले हैं। अर्थात् निगोद तो कभी समाप्त होने वाली भी नहीं है। भले ही अनंतानंत काल भी बीत जाय । अतः एक बात तो यह सिध्द हो गई कि मोक्ष में कितने जीव गए हैं ? अनंत । निगोद से कितने जीव बाहर निकले हैं ? अनंता और संसार में कितने अभी भी परिभ्रमण कर रहे हैं ? अनंत । ऐसा जरूरी है कि निगोद से बाहर निकले हुए सभी मोक्ष में चले गए हो ? नहीं, निगोद से बाहर निकलकर मोक्ष में जाने के लिए भी अनंत की यात्रा में प्रवास करना होता है। निगोद से बाहर निकला है परन्तु बाहरी संसार में ८४ लक्ष जीव योनियों में परिभ्रमण करता हुआ इसी चार गति के संसार चक्र में जीव भटक गया हैं। अतः निगोद से बाहर निकले हैं। यह वाक्य कहना युक्ति संगत सिध्द होता है। अरिहंत, सिध्दों का अदृश्य उपकार : इसमें एक बात यह सिध्द हो गई कि हम आज निगोद में नहीं हैं। संसार चक्र में परिभ्रमण करते हुए ८४ लक्ष जीव योनियों में आज अन्तिम मनुष्य जन्म में आए है। अतः यह तो निश्चित हो गया कि निगोद से बाहर निकलने के लिए किसी न किसी सिध्दात्मा का उपकार अवश्य है। मेरे समय कोई न कोई तो मोक्ष में जरूर गया ही था तभी तो मैं निगोद से बाहर निकल सका। अन्यथा अभी तक भी पड़ा ही रहा होता। मानों कि किसीका मोक्ष ही नहीं होता ? या कोई मोक्ष में गया ही नहीं होता तो कोई निगोद से बाहर भी नहीं निकला होता। अतः प्रत्यक्ष नहीं परोक्ष रूप से ही सही मुझे और सभी को सिध्द भगवंतों का उपकार अवश्य ही स्वीकारना पड़ेगा। हां, मेरे समय कौन सिध्द बने थे ? मुझे नाम मालुम नहीं है। भले ही नाम मालुम न हो। परन्तु सिध्द हए थे इसमें तो संदेह नहीं है। इसिलिए नमस्कार महामंत्र में किसी सिद्ध या अरिहंत भगवान विशेष का नाम नहीं दिया गया है । बहुवचनांत पद दिए गए हैं । वे गुणवाचक पद है। “नमो सिद्धाणं' पद से अनंत सिद्ध भगवंतो को मैं नमस्कार करता हूँ। अनंत सिद्धों में मेरे समय हुए सिद्ध भगवंत को भी नमस्कार हो गया तथा अनंत जीव संसार में है और सभी नमस्कार महामंत्र गिनें और सभी भिन्न-भिन्न नामोच्चार करते रहें तो मंत्र का स्वरूप कैसा बनेगा ? महामंत्र की शाश्वता कहां से रहेगी ? अतः गुणवाची बहुवचनांत पद है। उन सभी अनंत सिद्धों को नमस्कार हो। सिद्ध-माता, अरिहंत-पिता : (२३) कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy