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________________ नहीं है? जो कि सभी स्वर्ग में ही जाते हैं। नरकादि अन्य गति में कोई जाता ही नहीं है । और यदि जाता होता तो कोई किसी की मृत्यु के पीछे नरकवास या तिर्यंचवास लिखते । लेकिन आज दिन तक तो ऐसा नरकवास आदि शब्द किसी ने लिखा हो यह देखा नहीं गया । अतः क्या समझना ? कोई कहता है कि जीव कहां गया इसका हमको पता नहीं चलता । हम कोई ज्ञानी तो है नहीं । अतः नरकवास या तिर्यंचवास कैसे लिखें ? बात तो सही है । परन्तु मैं पुछता हूं कि जब ज्ञानी नहीं है, पता नहीं चलता है, अतः नरकवास या तिर्यंचवास नहीं लिखते हैं तो फिर स्वर्गवास लिखना क्यों प्रारंभ कर दिया है ? क्या जीव स्वर्ग में जाता है यह पता आपको मिल गया ? क्या आपको एक सिर्फ स्वर्ग में जाने का ही पता लगता है ? आज तो मानों स्वर्गवास लिखने का प्रचलित व्यवहार हो गया है। आए दिन अक्सर सभी स्वर्गवास ही लिखते हैं । तो क्या सभी मरने वाले स्वर्ग में ही जाते होंगे ? अन्य गति में कोई जाता ही नहीं है ? अच्छा अपने अपने पिता की मृत्यु के पीछे “मेरे पिताजी का स्वर्गवास हो गया है ।" इस तरह से पत्र लिखकर सभी सगे-सम्बन्धी - रिश्तेदारों को भेजा । लोकव्यवहार से पत्र का प्रत्युत्तर देते समय सामने वाले ने पत्र में लिखा कि 'आपका पत्र मिला...आपके पिताजी का स्वर्गवास हुआ यह जानकर बहुत दुःख हुआ है। वास्तव में बहुत बुरा हुआ, बहुत ही खराब हुआ है।' ये और ऐसे शब्द सामने वाले लिखते हैं । आप इन शब्दों पर अच्छी तरह से ध्यान दीजीए । मेरा यह कहना है कि जब आपने स्वर्गवास हुआ, ऐसा अच्छा शब्द लिखा है फिर भी सामने वाला बहुत खराब हुआ,.... बूरा हुआ ऐसा क्यों लिखता है ? क्या आपके पिता का स्वर्ग में वास हुआ है उसमें उसे विश्वास नहीं है? या वह यह कह सकता है कि आपके पिता का स्वर्गवास हो ही नहीं सकता ? उसके शब्दों का भावार्थ क्या है ? हां यदि आपने नरकवास या तिर्यंचवास लिखा होता और उसने प्रत्युत्तर में 'बहुत खराब हुआ, बुरा हुआ' लिखा हो तो फिर भी उचित था । लेकिन आपके स्वर्गवास (स्वर्ग में वास ) लिखने के बाद भी वह लिखता कि 'बहुत बुरा हुआ....खराब हुआ' । इसका भावार्थ क्या? - मैंने भावार्थ का स्पष्ट अर्थ जानने के लिए एक बार एक प्रसंग पर एक सज्जन से पूछा कि इसका क्या तात्पर्य है ? तो उसने जवाब में कहा - अजी महाराज वह तो आज-कल का लड़का है। बिचारा अपने बाप के बारे में वह क्या जानता है ? मैं और उसका बाप पक्के मित्र थे । हम साथ घूमते-जाते-आते-मिलते थे । उसके बाप ने क्या किया है ? कैसा काम किया है ? कहां क्या किया है ? किसके साथ क्या किया है ? आदि सब मैं अच्छी तरह जानता हूं। आज यह लड़का स्वर्गवास हुआ कर्म की गति नयारी १०
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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