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________________ जाकर जन्म लेता है तो यह कितना भारी पतन हुआ? कितने ऊपर से कितना नीचे गिरा? क्या इतना नीचे गिरकर वापिस इतना ऊपर चढ़कर देव बन सकेगा? नहीं, सम्भव नहीं है। ऊपर से नीचे गिरना आसान है परन्तु नीचे से ऊपर चढ़ना आसान नहीं है। पंचेन्द्रिय पर्याय से सीधा गिरकर एकेन्द्रिय में जीव गया, परन्तु एकेन्द्रिय पर्याय से सीधे पंचेन्द्रिय पर्याय में जाना बड़ा मुश्किल है। इस तरह देवगति के देवता का एकेन्द्रिय पर्याय में, पृथ्वीकाय में हीरे, सोने-चांदी आदि में जाकर जन्म लेना, कितना भारी सजा है ? देव गति से सीधे नरक में नहीं जाते : देवगति भी संसार में ही गिनी जाती है। मान लो कि देव गति का कोई देव बहुत ज्यादा पाप करता है तो वह मृत्यु पा कर क्या नरक में जाएगा? नहीं! जैन शास्त्रों में ऐसे शाश्वत नियम बताए गये हैं कि (१) देव गति से मृत्यु पा कर सीधा कोई भी देवता का जीव कभी भी नरक गति में नहीं जाता। हां! जन्म तिर्यच या मनुष्य गति में करके फिर वहाँ से नरक में जा सकता है। परन्तु सीधा देव मृत्यु पा कर नारकी नहीं बनता । (२) उसी तरह देव गति का देव मृत्यु पा कर तुरन्त पुनः देव नहीं बनता, पुनः देव गति में जन्म नहीं लेता। एक जन्म मनुष्य या तिर्यंच की गति में करके वहां से वापिस देव गति से मृत्यु पा कर च्युत होकर देव सिर्फ मनुष्य और तिर्यंच की दो ही गतियों में जा सकता है। अन्य दो गतियां देव के लिए बन्द है। नारकी जीव के नियम : ठीक वैसे ही दोनों नरक गति के नारकी जीव के लिए हैं। एक तो यह कि नरक गति का नारकी जीव मृत्यु के बाद सीधा देव गति में नहीं जा सकता। चूंकि नरक गति में पुण्योपार्जन करने का ऐसा साधन नहीं है कि नारकी जीव उस पुण्य से सीधा स्वर्ग में जा सके। नरक में नास्की जीव चाहे जो भी कुछ करे, कितनी भी वेदना सहन करे लेकिन वह देव गति उपार्जन नहीं करता। (२) उसी तरह से दूसरा शाश्वत नियम यह भी है कि नरक गति का नारकी जीव मृत्यु पा कर तुरन्त सीधा पुनः नारकी नहीं बनता । पुनः नरक में सीधा ही जन्म नहीं लेता । हाँ! जन्म मनुष्य या तिर्यंच गति में करके आए और फिर नरक में जन्म ले यह सम्भव है । उदाहरण के लिए भगवान महावीर की ही २७ जन्मों की परम्परा में देखिए ।१८ वें त्रिपुष्ट वासुदेव के जन्म में शय्यापालक अंगरक्षकों के कान में गरम-गरम तपाया हआ शीशा डलवाना, एवं सिंह को फाड़कर मार देना आदि महा पापों से उपार्जित कर्म के कारण १९ वें जन्म में वे सीधे सातवीं नरक में गये । उस नरक का आयुष्य समाप्त होते ही सीधे तिर्यंच गति में गये जहां वे सिंह बने । यह भगवान महावीर का २० वां भव था । यहाँ से मृत्यु पा . कर्म की शति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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