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________________ प्रथम अध्ययन : हिंसा-आश्रव आवसथ-भूमिगह-मंडपानां च कृते, भाजन-भाण्डोपकरणस्य विविधस्यार्थाय पृथिवीं हिंसन्ति मंदबुद्धिकाः । जलं च मज्जनक-पान-भोजन-वस्त्रधावन-शौचादिभिः । पचन-पाचन ज्वालन-विदर्शनरग्निं । सूर्प-व्यजन-तालवृन्त- (मयूरांग) पृथुनक-हुणमुख- करतल-सर्गपत्रवस्त्रादिभिरनिलं। आगार - परिचार (प्रतिचार)-भक्ष्य - भोजन - शयनासन - फलकमुशलोदूखल-ततविततातोद्य - वहन - वाहन-मण्डप - विविध भवन- तोरणविटंग - देवकुल - जालकार्द्धचन्द्र - नि! ह (निव्यूह) - चन्द्र - शालिकावेदिका - निःश्रेणि - द्रोणी - चङ्गरी - कील-मुण्डका (मेढक) - सभा-प्रपावसथ-गन्धमाल्यानुलेपाम्बर-युग-लांगल - मे (म) तिक - कुलिक - स्यन्दनशिबिका - रथ-शकट - यान - युग्याट्टालक-चरिका-द्वार-गोपुर-परिघा-यंत्रशूलिका-लकुट-भुशुण्डि-शतघ्नी बहुप्रहरणाऽवरणोपस्कराणां कृते, अन्यैश्चैवमादिभिर्बहभिः कारणशहिंसन्ति तांस्तरुगणान् । भणितानभणितांश्चैवमादीन् सत्त्वान् सत्त्वपरिवजितानुपघ्नन्ति दृढ़-मढा दारुणमतयः क्रोधान्मानान्मायाया लोभात् हास्यरत्यरतिशोकात् वेदार्थी (वेदार्थ) जीव (जीत) धर्मार्थकामहेतोः स्ववशा अवशा अर्थायानर्थाय च त्रसप्राणान् स्थावरांश्च हिंसन्ति । __ मन्दबुद्धयः सवशा घ्नन्ति, अवशा घ्नन्ति, स्ववशा अवशा द्विधा घ्नन्ति, अर्थाय घ्नन्ति, अनर्थाय घ्नन्ति, अर्थायानर्थाय द्विधा घ्नन्ति, हास्याद घ्नन्ति, वैराद् घ्नन्ति, रतेघ्नन्ति, हास्यवैररतिभ्यो घ्नन्ति, क्रुद्धा घ्नन्ति, लुब्धा घ्नन्ति, मुग्धा घ्नन्ति, क्रुद्धा मुग्धा लुब्धा घ्नन्ति, अर्थाद् घ्नन्ति, धर्माद् घ्नन्ति, कामाद् घ्नन्ति, अर्थाद् धर्मात्कामाद् घ्नन्ति ॥सू०॥३॥ पदार्थान्वय-(पुण च केवि) और फिर कई (पावा) पापी (असंजया) असंयमी (अविरया) पापक्रिया से अविरत, (अणिहुय परिणामदुप्पयोगी) अनुपशान्त परिणामों में मन-वचन-काया को दुष्प्रयुक्त करने वाले, (परदुक्खोपायणपसत्ता) परदुःखोत्पादन में तत्पर, (इमेहिं) इन (तसथावरेहि) त्रस और स्थावर, (जीवेहि) जीवों में, (पडिणिविट्ठा) द्वेषभाव रखने वाले, (तं) पूर्वसूत्र में जिसके विभिन्न नाम बता चुके हैं, · उस, (भयंकर) भयंकर, (बहुविहं) अनेक भेदप्रभेद वाले, (बहुप्पगारं) अनेक प्रकार के (पाणवहे) प्राणिवध को (करेंति) करते हैं। (कि ते ?) वे प्राणवध किन-किनका किस लिए करते हैं ? (पाठीणतिमितिमिगल-अणेग झस-विविहजातिमंडुक्क - दुविहकच्छभ - णक्कचक्क-मगरदुविहमुसंढ-विविहगाह-दिलिवेढय-मंडुय-सीमागार - पुलक - सुसुमार बहुप्पगारा जलयर
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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