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________________ ७१२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र को पराजित कर देता है वैसे ही इस व्रत का धारण करने वाला साधु कर्मशत्रु ओं की सेना को पराजित कर देता है, अथवा उपद्रवों को परास्त कर देता है । इस प्रकार सिर्फ एक ब्रह्मचर्य व्रत के होने पर अनेक गुण आत्मा के अधीन हो जाते हैं । इस ब्रह्मचर्य की आराधना करने पर सम्पूर्ण मुनिव्रतों का आराधन हो जाता है, तथा शील, तप, विनय, संयम, क्षमा, गुप्ति मन-वचनकाया का नियंत्रण), मुक्ति निर्लोभता, तथा इहलोक और परलोक सम्बन्धी यश (एक देश व्यापी), कीर्ति (सर्व देशव्यापिनी) और प्रतीति का पालन इस एक व्रत से हो जाता है । इस लिए जीवन पर्यन्त जब तक संयमी साधु के शरीर में सफेद हड्डियाँ शेष रहें तब तक स्थिरचित्त होकर मन, वचन, काया से सर्वतो विशुद्ध ब्रह्मचर्य का आचरण करना चाहिए । भगवान् महावीर प्रभु ने ब्रह्मचर्य व्रत का स्वरूप इस (आगे कहे जाने वाले) प्रकार से बताया है यह ब्रह्मचर्य महाव्रत पंचमहाव्रत रूप जो उत्तमव्रत हैं, उनका मूल है, अथवा पांच महाव्रतों और पांच अणुव्रतों का मूल है। निर्दोष साधुओं ने भावपूर्वक सम्यक् प्रकार से इसका आचरण किया है, वैर को शांत-निवृत्त करना ही इसका अन्तिमफल है। समस्त समुद्रों में महान् स्वयम्भरमण समुद्र के समान दुस्तर है, पवित्रता के कारणभूत तीर्थ के समान परमपवित्र है । अथवा स्वयम्भूरमण समुद्र के समान विस्तीर्ण संसार सागर से पार करने वाला तीर्थ है ॥१॥ __ तीर्थंकरों ने समिति, गुप्ति आदि से इसके पालन करने का उपाय बताया है । यह नरक और तिर्यग्गति के मार्ग का निवारण करने वाला है । यह संपूर्ण पवित्र कार्यों को सारवान् बनाने वाला है। इसने सिद्धि-मुक्ति तथा स्वर्ग विमानों का मार्ग खोल दिया है ॥२॥ यह देवेन्द्रों और नरेन्द्रों द्वारा नमस्कृत एवं गणधरादि द्वारा पूजित है । यह सारे जगत् के मंगलमय कार्यों का मार्ग है । इसका कोई पराभव नहीं कर सकता, यह दुर्धर्ष है । यह समस्त गुणों का एकमात्र नायक है, यह सम्यग्दर्शन आदि मोक्ष मार्ग का शेखर (शिरोभूषण) है, प्रधान है ॥३॥ इसका शुद्ध रूप में आचरण करने से ही मनुष्य उत्तम ब्राह्मण होता है, सुश्रमण होता है, स्वपर कल्याण को साधने वाला साधु होता है, श्रेष्ठ ऋषि-परमार्थद्रष्टा होता है, जगत् के तत्त्वों पर मनन करने वाला सुमुनि होता है। वही संयमी है, वही भिक्षु है, जो ब्रह्मचर्य का शुद्ध पालन करता है।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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