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________________ प्रथम अध्ययन : हिंसा - आश्रव आश्रवों का समुच्चयरूप से निरूपण पढ़ने के बाद सहसा शंका होती है कि प्रथम आश्रव किस प्रकार का है ? उसका स्वरूप क्या है ? उसके क्या-क्या कुफल हैं ? अतः इसके उत्तर में यहाँ से प्रथम आश्रव द्वार प्रारम्भ करते हैं प्रतिपाद्य विषय का वर्गीकरण मूलपाठ जारिओ, जनामा जह य कओ जारिसं फलं देति । जेविय करेंति पावा पाणवहं तं निसामेह || ३ || संस्कृत-छाया यादृशको यन्नामा यथा च कृतो यादृशं फलं ददाति । येsपि च कुर्वन्ति पापाः, प्राणवधं तं निशामयत ॥ ३ ॥ पदार्थान्वय - ( जारिसओ) जिस प्रकार का उसका स्वरूप है, (जनामा ) जो जो उसके नाम हैं, (जह य कओ ) जैसे किया जाता है, (जारिसं) जैसा, ( फलं ) दुःख रूप फल, (वेति) देता है, (जे वि य) और जो भी, (पावा) पापीजीव (फरेंति ) उसका सेवन करते है, (तं) उस, (पाणवहं) प्राणवध के बारे में (निसामेह) - मेरा कथन सुनो । मूलार्थ - श्री सुधर्मास्वामी अपने शिष्य जम्बूस्वामी से कहते हैंजम्बू ! प्राणवध ( हिंसा) का क्या स्वरूप है ? उसके कौन-कौन से नाम हैं ? वह जिस तरह से किया जाता है तथा वह जो फल देता है, और जोजो पापी जीव उसे करते हैं, उन सबको सुनो । व्याख्या इस गाथा में प्रथम आश्रवद्वार में वर्णनीय प्राणवध ( हिंसा) आश्रव के सम्बन्ध १ किसी किसी प्रति में 'दिति' शब्द मिलता है ।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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