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________________ छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर अहिंसा के सार्थक नाम प्रथम संवरद्वार का प्रारम्भ करने से पूर्व शास्त्रकार ने उसकी प्रस्तावना के रूप में पांचों संवर द्वारों के निरूपण का उद्देश्य, उनका माहात्म्य, स्वरूप और गुणोत्कीर्तन करने के साथ ही उनकी उपयोगिता तथा उनमें अहिंसा-संवर को सर्वोपरि स्थान देने का कारण बताया है। उसके बाद यहां से प्रथम संवरद्वार का निरूपण प्रारम्भ करते हुए शास्त्रकार अपनी पुरातन वर्णनशैली के अनुसार सर्वप्रथम अहिंसा के पर्यायवाची गुणनिष्पन्न ६० नामों का उल्लेख करते हैं मूलपाठ ..तत्थ पढमं अहिंसा जा सा सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स भवति दीवो ताणं सरण गती पइट्ठा १ निव्वाणं, २ निब्बुई, ३ समाही, ४ सत्ती, ५ कित्ती, ६ कंती, ७ रती य, ८ विरती य, ६ सुयंग, १० तित्ती, ११ दया, १२ विमुत्ती, १३ खंती, १४ समत्ताराहणा, १५ महंती, १६ बोही, १७ बुद्धी, १८ धिती, १६ समिद्धी, २० रिद्धी, २१ विद्धी, २२ ठिती, २३ पुट्ठी, २४ नंदा, २५ भद्दा, २६ विसुद्धी, २७ लद्धी, २८ विसिट्ठदिट्ठी, २६. कल्लाणं, ३० मंगलं, ३१ पमाओ, ३२ विभूती, ३३ रक्खा, ३४ सिद्धावासो, ३५ अणासवो, ३६ केवलीण ठाणं, ३७ सिवं, ३८ समिई, ३६ सील, ४० संजमोत्ति य, ४१ सीलपरिघरो, ४२ संवरो य, ४३'गुत्ती, ४४ ववसाओ, ४५ उस्सओ, ४६ जन्नो, ४७ आयतणं, ४८ जयण,-४९ मप्पमातो, ५० अस्सासो, ५१ वीसासो, ५२ अभओ, ५३ सव्वस्स वि अमाघाओ, ५४ चोक्ख ५५ पवित्ता, ५६ सूतो, ५७ पूया, ५८ विमल, ५६ पभासा य,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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