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________________ १४७४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (तलवरा) राजा के द्वारा प्रसन्न हो कर दिये गये रत्नजटित स्वर्णपदक को मस्तक पर बांधने वाले, (सेणावती) सेनानायक, इन्भा) हस्तीप्रमाण स्वर्णराशि के स्वामी बड़े सेठ, (सेट्ठी) सामान्य धनिक सेठ, (रठिया) राष्ट्र को चिन्ता करने वाले–राजचिन्ता करने वाले राजनियुक्त बड़े अधिकारी (पुरोहिया) शान्तिकर्म करने वाले पुरोहित (कुमारा) कुमार- राज्यासन के योग्य कुमार, (दंडणायगा) दंडनायक-तंत्रपाल पुलिस-अधिकारी, (गणनायगा) गणनायक--मुखिया, (माडंबिया) ऐसे गांवों के राजा, जिन गांवों के चारों ओर योजन तक अन्य बस्ती न हो, (सत्थवाहा) सार्थवाहब--नजारे, (कोडुबिया) कुटुम्बों में अगुआ या ग्राम का मुखिया (अमच्चा) अमात्य मंत्री-राज्यहितैषी-दरबारी, (एए अन्न य एवमाती) ये और इसी प्रकार के अन्य, (नरा) मनुष्य (परिग्गहं संचिणंति) पूर्वोक्त जो परिग्रह है, उसे इकटठा करते हैं, जो (अणतं) अन्तरहित है, (असरणं) शरण देने वाला नहीं है, (दुरंत) परिणाम में दुःखप्रद है, (अधुवं) जो स्थिर रहने वाला नहीं है, (अणिच्चं) जो अनित्य है – नाशवान है, (असासयं) सदा रहने वाला नहीं है, (पावकम्मनेमं) पापकर्मों का मूल है (अवकिरियव्वं) त्याज्य है, (विणासमूलं) ज्ञानादिगुणों के विनाश का कारण है। (बहबंधपरिकिलेसबहुलं) वध-मारनेपीटने, बंधन में डालने तथा रातदिन परिक्लेश से प्रचुर है । (अणंतसंकिलेसकारणं) अपार संक्लेशों-चित्तविकारों को पैदा करने वाला है । (च) और (ते) वे देव (तं) उस (धणकणगरयणनिचयं) धन-सम्पत्ति, सोना और रत्नों की राशि का (पिडिता एव) संचय करते हुए (सव्वदुक्खसंनिलयणं) समस्त दुःखों के आश्रयभूत या घर (संसारं) संसार में जन्ममरण के चक्र में, (अतिवयंति) पड़ते हैं, परिभ्रमण करते हैं । (परिग्गहस्स अट्ठाए) परिग्रह के लिए (सिप्पसयं) सैकड़ों शिल्प या हुन्नर (य) और (बहुजणो) बहुत-से लोग, (बावरि सुनिपुणाओ लेहाइयाओ सउणसयावसाणाओ गणियप्पहाओ कलाओ) भलीभांति निपुणता कराने वाली लेखन आदि से ले कर पक्षियों की बोलीशब्द के ज्ञान तक की गणित प्रधान ७२ कलाएँ (च) और (चउठ्ठि रतिजणणे महिलागुणे ) रति उत्पन्न करने वाले ६४ महिलागुणों-स्त्रियों को ६४ कलाएँ (सिप्पसेवं) शिल्प विविध प्रकार के हुन्नर तथा सेवा का कार्य (असिमसिकिसिवाणिज्ज) तलवार चलाने का अभ्यास युद्धविद्या, हिसाब व किताब या लेखादि लिखने का कार्य, खेतीबाड़ी एवं व्यापार–वाणिज्य, (ववहारं) विवाद मिटाने की विद्या-वकालात, (अत्थसत्थ-इसत्थच्छरुप्पगयं) अर्थशास्त्र, राजनीति, धनुर्वेद आदि
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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