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________________ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव ४२५ की एक न मानी । आखिर युद्ध की दुदुभि बजी। राम और रावण की सेना में परस्पर घोर संग्राम हुआ । दोनों ओर के अगणित मनुष्य मौत के मेहमान बने । अधर्मी रावण के पक्ष के बड़े-बड़े योद्धा रण में खेत रहे। आखिर रावण रणक्षेत्र में आया। रावण तीन खण्ड का अधिनायक प्रतिनारायण था। उससे युद्ध करने की शक्ति राम और लक्ष्मण के सिवाय किसी में न थी। यद्यपि हनुमान आदि अजेय योद्धा राम की सेना में थे, तथापि रावण के सामने टिकने की और विजय पाने की ताकत नारायण के अतिरिक्त दूसरे में नहीं थी। अतः रावण के सामने जो भी योद्धा आए उन सबको वह परास्त करता रहा, उनमें से कई तो रणचंडी की भेंट भी चढ़ गए। रामचन्द्रजी की सेना में हाहाकार मच गया। राम ने लक्ष्मण को ही समर्थ जान कर रावण से युद्ध करने का आदेश दिया। दोनों ओर से शस्त्रप्रहार होने लगे । लक्ष्मण ने रावण के चलाए हुए सभी शस्त्रों को निष्फल करके उन्हें भूमि पर गिरा दिया । अन्त में, क्रोधवश रावण ने अन्तिम अस्त्र के रूप में अपना चक्र लक्ष्मण पर चलाया, लेकिन वह लक्ष्मण की तीन प्रदक्षिणा देकर लक्ष्मण के ही दाहिने हाथ में जा कर ठहर गया। रावण हताश हो गया। अन्ततः लक्ष्मणजी ने वह चक्र संभाला और ज्यों ही उसे घुमा कर रावण पर चलाया, त्यों ही रावण का सिर कट कर भूमि पर आ गिरा। रावण यमलोक का अतिथि बना। रावण की मृत्यु के बाद श्रीराम ने उसके धर्मप्रिय भाई विभीषण को लंका का राज्य सौंपा। चिरकाल से वियोग के कारण दुःखित सीता श्रीराम को ओर श्रीराम सीता को पा कर हर्षविभोर हो गए। आनन्दोत्सव-पूर्वक उन्होंने अयोध्या में प्रवेश किया और सहर्ष राज्य करने लगे। यद्यपि सीता के निमित्त रामचन्द्रजी ने रावण से युद्ध छेड़ा था ; तथापि रामचन्द्रजी का पक्ष न्याय और धर्म से युक्त था ; रावण का पक्ष अन्याय-अनीति और अधर्म से पूर्ण था। इसलिए महासती सीता के लिए जो युद्ध हुआ ; वह रावण की मदान्धता और कामान्धता के ही कारण हुआ। - (२) द्रौपदी के लिए हुआ संग्राम–कांपिल्यपुर में द्रुपद नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम चुलनी था। उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्र का नाम धृष्टद्युम्न था, और पुत्री का नाम था—द्रौपदी। विवाहयोग्य होने पर राजा द्रुपद ने उसके योग्य वर चुनने के लिए स्वयंवरमण्डप की रचना करवाई तथा सभी देर्शों के राजा-महाराजाओं को स्वयंवर के लिए आमंत्रित किया। हस्तिनागपुर के राजा पाण्डु के पांचों पुत्र युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव भी उस स्वयंवर-मंडप में पहुंचे । मंडप में उपस्थित सभी राजाओं और राजपुत्रों को
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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