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________________ सम्मतियां ग्रन्थ के परिशीलन तथा पर्यवलोकन से यह स्पष्ट है जैन धर्म तथा दर्शन से सम्बद्ध प्रायः सभी विषय इस अत्यन्त प्रामाणिक, शास्त्रीय तथा युक्तियुक्त रूप व्याख्यात हुए हैं । अन्यान्य दर्शनों में उन-उन विषयों प हुए निरूपण के साथ जो तुलनात्मकं एवं समीक्षात्म विवेचन किया गया है, वह गहरी सूक्ष्मता आँ तलस्पर्शिता लिए हुए हैं। बधाई ! - युवाचार्य मधुकर मुि 'जैन तत्व कलिका' ग्रन्थ सचमुच ही जैन दर्शन एवं ध का अधिकृत समग्र ग्रन्थ कहा जा सकता है। एक ग्रन्थ में सम्पूर्ण जैन धर्म-दर्शन का सार समा गया है। आचार्य सम्राट आगमों के गहन अभ्यासी और पारगाम थे। उनकी रचना का अक्षर-अक्षर जैन आगम मणिय की छवि से प्रतिभाषित है । आचार्य श्री की महान कृ को नवीन परिवेश में प्रस्तुत करने में सम्पादक द्वय महती यशस्विता प्राप्त की है। - मुनि कन्हैयालाल 'कमल' (आगम अनुयोग प्रवर्तक श्रद्धास्पद आचार्य देव की अमर कृति 'जैन तत्व कलिव 'विकास' का नवीन सम्पादित रूप देखकर मन प्रफुल्लि हुआ, इसी प्रकार अन्य साहित्य भी प्रस्तुत किया जा तो जैन दर्शन के जिज्ञासुओं को बहुत लाभ होगा: मे शत-शत बधाई । - ज्ञान मु 'जैन तत्व कलिका' का परिशीलन करने पर ऐ अनुभव हुआ- एक ही ग्रन्थ गागर में जैन दर्शन व सागर सूक्ष्म रूप में समाविष्ट हो गया है। इस प्रश प्रयत्न के लिए बधाई....। - देवेन्द्र मुनि शास्त्र
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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