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________________ धर्म के विविध स्वरूप | ३१ लौकिक और लोकोत्तर : दोनों प्रकार के धर्मों का पालन आवश्यक आचार्य सोमदेवसूरि ने गृहस्थों के लिए लौकिक और लोकोत्तर (पारलौकिक) दोनों धर्मों के पालन का संकेत किया है। देखिये उनके ग्रन्थ का प्रमाण-"गृहस्थ के लिए दोनों धर्म ही पालनीय होते हैं, यथा-लौकिक और पारलौकिक (लोकोत्तर) । लौकिक धर्म लोकाश्रित है और पारलौकिक (लोकोत्तर) धर्म आगमाश्रित है। इसका फलितार्थ यह है कि लौकिक धर्मों के लिए विस्तृत वर्णन या प्ररूपण आगमों में प्राप्त नहीं होगा, केवल नाम निर्देश होगा; क्योंकि लौकिक धर्मों में द्रव्य, क्षेत्र,काल और भाव की अपेक्षा से पविर्तन-संशोधन-परिवर्तन होते रहते हैं, अतः आगमों में लौकिक धर्मों की कोई एक निश्चित रूपरेखा पद्धति या विधि नहीं बताई गई है। परन्तु लोकोत्तर धर्म की विधि या पद्धति निश्चित है, इसलिए आगमों में लोकोत्तर धर्मों की मर्यादाएँ निश्चित कर दी गई हैं, उनकी विधियों का भी विस्तृत वर्णन मिलता है। - आचार्यों ने लौकिक धर्मों की कसौटी और उनके पालन की कुछ मर्यादाएँ अवश्य बताई हैं। प्रत्येक धर्म की रक्षा के लिए धर्मनायक . शास्त्रकारों ने पूर्वोक्त दस धर्मों के यथावत् पालन के लिए तथा विभिन्न प्रकार की नैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक व्यवस्था की सुरक्षा के लिए दस प्रकार के धर्मनायकों की भी योजना की है। वे दस धर्मनायक इस प्रकार हैं--(१) ग्रामस्थविर, (२) नगरस्थविर, (३) राष्ट्रस्थविर, (४) प्रशास्तास्थविर, (५) कुलस्थविर, (६) गणस्थविर, (७) संघस्थविर, (८) जातिस्थविर, (६) तस्थविर और (१०) दीक्षास्थविर । । प्रस्तुत दोनों सूत्रों अर्थात् धर्मों और स्थविरों का रूप और रस की तरह अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। जहाँ रूप होता है, वहाँ रस अवश्य होता है, जहाँ रस होता है, वहाँ रूप भी दृष्टिगोचर होता है । रूप और रस के अविनाभावसम्बन्ध की तरह धर्मों और स्थविरों का भी अविनाभाव सम्बन्ध १ द्वौहि धर्मो गृहस्थानां, लौकिकः पारलौकिकः । लोकाश्रयो भवेदाद्यः, परः स्यादागमाश्रयः ।। -यशस्तिलकचम्पू २ दस थेरा पण्णत्ता, त जहा- गामथेरा १, नगरथेरा २, रट्ठथेरा ३, पसत्थारथेरा ४, कुलथेरा ५, गणथेरा ६, संघथेरा ७, जातिथेरा ८, सुयथेरा ६, परियायथेरा १०। -स्थानांग सूत्र, स्थान १०, सू.७६१
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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