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________________ २२४ : जैन तत्त्वकलिका - द्वितीय कलिका रूप से विधिपूर्वक करना, अर्थात् - साध - साध्वी के लिए जिस समय जिस-जिस क्रिया को करने का शास्त्र में विधान है, उस करणीय क्रिया को उसी समय शुद्ध रूप से शुद्ध अन्तःकरण से मनोयोगपूर्वक करना; करण सत्य है । जैसे - पिछली रात्रि का एक प्रहर शेष रहते जागृत होकर आकाश की ओर दृष्टिपात करके देख ले कि कोई अस्वाध्याय का कारण ' तो नहीं १ (क) स्थानांग सूत्र में बत्तीस अस्वाध्यायों का वर्णन है । (१-१०) आकाश सम्बन्धी दस ( १ ) उल्कापात (एक प्रहर) (२) दिग्दाह, (एक प्रहर ) ( ३ ) गर्जित ( दो प्रहर ) ( ४ ) विद्युत ( एक प्रहर, आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक गर्जित और विद्यत् को छोड़कर), (५) विर्घात (बिना बादल के व्यन्तरादिकृत गर्जन ध्वनि. की स्थिति में एक अहोरात्र तक ), (६) यूषक ( शुक्लपक्ष में प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया की सन्ध्या की प्रभा और चद्रप्रभा का मिलन यूपक है। इन तीन दिनों में रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय न करना), (७) यक्षादीप्ति ( दिशा विशेष में बिजली- सरीखी चमक को यक्षादीप्ति कहते हैं, इसमें एक प्रहर तक अस्वाध्याय रहता है ) ( ८ ) धूमिका ( प्राय: कार्तिक से लेकर माघ मास तक सूक्ष्म जल रूप धूवर जब तक गिरती रहे तब तक अस्वाध्याय), (६) महिक: - शीतकाल में श्वेतवर्ण की सूक्ष्म जलरूप धूवर जब तक गिरती रहे, तब तक), (१०) रज - उद्धात ( आकाश चारों ओर धूलि से आच्छादित हो, तब तक अस्वाध्याय) । ( ११-२० ) औदारिक रम्बन्धी दस (११-१३) अस्थि, मांस, रक्त (मनुष्य या तिथंच पंचेन्द्रिय से सम्बन्धित हड्डी, माँस या रक्त क्रमशः १०० और ६० हाथ के अन्दर हो तो एक अहोरात्र तक मासिक धर्म का तीन दिन तक एवं शिशुजन्म का ७-८ दिन तक अस्वाध्याय रहता है | ) ( १४ ) अशुचि ( स्वाध्याय स्थान के निकट टट्टी पेशाब दृष्टिगोचर हों, या दुर्गन्ध आती हो तो अस्वाध्याय है ।) (१५) श्मशान ( मरघट के चारों ओर १००-१०० हाथ तक स्वाध्याय न करना) (१६) चन्द्रग्रहण ( जघन्य ८ प्रहर, उत्कृष्ट १२ प्रहर तक अस्वाध्याय), (१७) सूर्यग्रहण ( जघन्य १२, उत्कृष्ट १६ प्रहर तक अस्वाध्याय) (१८) पतन – राजा की मृत्यु होने पर दूसरा राजा सिंहासनारूढ़ न हो, तब तक; राजमन्त्री, संघपति, मुखिया, शय्यातर या उपाश्रय के आस-पास ७ घरों के अन्दर किसी की मृत्यु होने पर एक दिन-रात तक अस्वाध्याय) (१६) राजव्युद्ग्रह ( शासकों में परस्पर संग्राम होने पर शान्ति न हो तब तक, शान्ति होने पर भी एक अहोरात्र तक ) ( २० ) औदारिक शरीर ( उपाश्रय में मनुष्य या तियंच पंचेन्द्रिय का निर्जीव शरीर पड़ा हो तो १०० हाथ के अन्दर स्वाध्याय न करना ) ; ( २१-२८) चार महोत्सव और चार महाप्रतिपदा - आषाढ़, आश्विन, कार्तिक और चैत्र की पूर्णिमा ये चार 1
SR No.002475
Book TitleJain Tattva Kalika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1982
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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