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________________ प्रगति का मूलमंत्र : समभाव ५३ उनके कहने का भावार्थ यह है कि जो ममतापूर्वक केवल ले-लेकर रखना ही जानता है, उसे किसी भी व्यक्ति के सुख दुःख की परवाह नहीं रहती। परिग्रह का प्रथम रूप इच्छा है। फिर इसके आकांक्षा, अहंता-ममता, मूर्छा, लालसा, तृष्णा आदि विविध रूप प्रकट होते हैं। पहले मनुष्य इच्छाओं का जाल बिछाता है, फिर आकांक्षापूर्वक अभीष्ट वस्तु का संग्रह करता है, फिर संग्रह की हुई वस्तु पर अहंता-ममता करता है । आप सब जानते हैं कि इच्छाओं के भार से दबा हुआ व्यक्ति उपार्जन, संग्रहण और रक्षण के अतिरिक्त दूसरी बात जानता ही नहीं। वह अहर्निश आशाओं व इच्छाओं के पंख लगाकर पुनः-पुनः पापकर्मों के लिए प्रेरित होता है । क्या , आप जानते हैं, ऐसे व्यक्ति की क्या दशा होती है ? ऐसा व्यक्ति अहंता और ममता के ग्रहण, रक्षण और संग्रह के वशीभूत होकर कर्तव्य-अकर्तव्य को, हिताहित को एवं कल्याण-अकल्याण को भूल जाता है और परिग्रह के लिए नाना प्रकार के पापकर्म करता है। . बगदाद के खलीफा के यहाँ हसन नामक एक लोभी प्रकृति का व्यक्ति नौकर था। सरकारी नौकरी से प्रचुर धन कमाने के बावजूद भी उसकी धन लिप्सा शान्त नहीं हुई। वह धन जोड़-जोड़ कर रखता जाता, मामूली खा-पीकर गुजारा चलाता । धन के लालची हसन ने एक दिन अपनी बीबी फातिमा से कहा - "तुम बाजार में जाओ और करुण स्वर में पूकार कर कहो--'मेरे पति को खलीफा ने कैद कर लिया है।' ऐसा करने से लोग तुम्हारे प्रति हमदर्दी बताएँगे, तुम्हें रोटी-कपड़े की मदद कर देंगे। मैं रात को घर आ जाया करूंगा।" फातिमा ने इस तरीके से धन बटोरना शुरू कर दिया। धन बढ़ने के साथ-साथ हसन में कंजूसी भी बढ़ती गई। वह अपनी संग्रहवृत्ति की हविश को पूरी करने के लिए खलीफा के महल से प्रतिदिन एक हीरा चुरा कर लाने लगा । एक दिन हसन से उसकी बीबी ने पूछा..."इतने हीरों का क्या करोगे?" हसन बोला--"हम इन हीरों को सोने के सिक्कों में बदलवा कर बगदाद से बहुत दूर भाग जाएँगे। फिर चैन से जिंदगी काटेंगे।" मगर एक दिन हसन चोरी करते हए रंगे हाथों पकड़ा गया। उसे गिरफ्तार करके खलीफा के सामने पेश किया गया। खलीफा ने अदालत का फैसला सुनाते हुए कहा- "बाजार में तुम्हारी बीवी राजमहल से चुराया हुआ हीरा बेचती हुई पकड़ी गई। तुम चोरी करते पकड़े गए । इससे साफ जाहिर है कि तुम चोर हो । तुम्हारे पास धन की कमी नहीं
SR No.002473
Book TitleAmardeep Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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