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________________ | * ४० * * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * . -मंत्र के उत्तरार्ध का भाव है कि इन्द्र ने वाणी और बल से मानव के लिए इन्द्रियरूप को धारण किया। सारांश-निष्कर्ष रूप में इन्द्र शब्द सूर्य, वायु, विद्युत्, परमेश्वर, जीवात्मा, योगी, विद्वान्, राजा, सेनापति, ऐश्वर्यवान् तथा ऐश्वर्य अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। इन्द्र पारमार्थिक और व्यावहारिक रूप में भारतीय संस्कृति में ओतप्रोत है। विभिन्न पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वानों ने इन्द्र को विश्वकर्मा, विश्वरूपा परमात्मापरक स्वरूप में स्थापित किया है। जैनदर्शन में इन्द्र जैनदर्शन अनेकान्तवादी है। प्रत्येक शब्द और विषय को अनेक दृष्टिकोण से समझता है और उसका सर्वांगीण विवेचन करता है। इसी शैली पर 'इन्द्र' शब्द पर विचार किया गया है। 'स्थानांगसूत्र' के प्रथम तीन सूत्रों में 'इन्द्र' शब्द के भिन्न-भिन्न रूप बताये हैं। जैसे नाम इन्द्र-किसी व्यक्ति का नाम ‘इन्द्र' हो, जैसे–इन्द्रचन्द्र, इन्द्रसेन, इन्द्रकुमार इत्यादि। स्थापना इन्द्र-किसी वस्तु, प्रतिमा, ध्वजा या वट-वृक्ष आदि में इन्द्र नाम की स्थापना की हो, जैसे-इन्द्रध्वज, इन्द्र की प्रतिमा, इन्द्र-वट इत्यादि। द्रव्य इन्द्र-जो ‘इन्द्र' बन चुका हो या बनने वाला हो अथवा इन्द्र के गुण, ऐश्वर्य आदि से रहित हो, वह द्रव्य इन्द्र है। दूसरे सूत्र में पुनः इन्द्र तीन प्रकार के बताये हैं ज्ञान इन्द्र-जो आत्मा परम उत्कृष्ट अतिशय ज्ञानयुक्त है, वह है ज्ञानेन्द्र, केवलज्ञानी। दर्शन इन्द्र-जो आत्मा परम निर्मल क्षायक सम्यक्त्व-सम्पन्न है, वह दर्शनेन्द्र कहलाता है। चारित्र इन्द्र-जो अत्यन्त उज्ज्वल निर्दोष चारित्र-सम्पन्न, यथाख्यात चारित्रधारी आत्मा चारित्रेन्द्र कहलाता है। इन्द्र के ये तीनों ही अर्थ-पानव देह स्थित आत्मा को लक्ष्य में रखकर बताये गये हैं। यह ‘भाव इन्द्र' का स्वरूप है और यह इन्द्रत्व सिर्फ मनुष्य ही प्राप्त कर सकता है। इन्द्र के पुनः तीन प्रकार बताये हैं
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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