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________________ | * ३२ * * पद्म-पुष्प की अमर सौरभ * जीवन है। जीवन में रोग भी है, वियोग भी है, संयोग भी है, जवानी है, बुढ़ापा है, फिर मृत्यु है। इसलिए प्रभु महावीर ने फरमाया है-राग-द्वेष ही कर्मों के कारण इनके द्वारा कर्मों की उत्पत्ति होती है। कर्मों के कारण ही संसार परिभ्रमण है। उदाहरण-एकदा बादशाह अकबर प्रातःकालीन किसी नारी के रुदन की आवाज सुनता है-“अरे ! ये क्या? ऐसी कौन-सी औरत है, भोर के सुहावने समय में भी रो रही है।" तब बादशाह सलामत ने एक सेवक को दौड़ाया और कहा-“देखो कौन रो रही है ?" सेवक दौड़ा और वापस लौटकर आया। बादशाह सलामतं को सूचना दी-“जहाँपनाह ! एक लड़की रो रही है।" "क्यों?" “उस लड़की को जमाईराज अपने साथ ले जा रहा है। अर्थात् पीहर से ससुराल जा रही है। इसीलिए लड़की जाते समय रो रही है।" बादशाह अकबर ने अपने वजीर बीरबल को बुलाया। बीरबल सज-धजकर राजदरबार में हाजिर हो गया और बोला-“जी हुजूर ! फरमाओ क्या आज्ञा है इस सेवक को?” “अरे बीरबल ! जमाई तो बड़े ऊत होते हैं, जोकि लड़कियों को ले जाते समय उन्हें रुलाते हैं। बीरबल ! आप लोहे के डण्डे तैयार करवाओ और उन जमाइयों को राजदरबार में बुलवाओ और लोहे के डण्डों से पिटाई करवाऊँगा।" ____बीरबल बुद्धि का धनी था। भरे राजदरबार में बीरबल डण्डों के नमूने लेकर आ गया। डण्डे सोने, चाँदी और लोहे के लेकर आया। बादशाह अकेबर से कहा“हुजूर ! लो, मैं ये डण्डे ले आया हूँ।” “अरे बीरबल ! ये तीन प्रकार के डण्डे कैसे?” “हुजूर ! जमाई में अन्तर होता है। किसी का जमाई गरीब का, किसी का अमीर का और कोई जमाई बादशाह का भी होगा। ऐसा सोचकर ही तो तीन नमूने बनवाकर लाया हूँ। जहाँपनाह ! आप क्षमा करना, आप भी तो किसी के जमाई हो। आपकी पिटाई लोहे के डण्डे से नहीं बल्कि सोने के डण्डे से होगी। आपके लिए सोने के डण्डे तैयार किये हैं। इन सेठ साहूकारों के जमाइयों के लिए किसी और डण्डे से नहीं, इस चाँदी के डण्डे से पिटाई होगी। और इन गरीबों के जमाइयों की पिटाई लोहे के डण्डों से होगी। हुजूर ! जैसा मुँह वैसी चपत होनी चाहिए।' बादशाह अकबर समझ गया और मुस्कराया तथा कहा-“अरे बीरबल ! मेरे साथ भी ऐसा होगा। नहीं भाई ! ऐसा काम नहीं करना है। मार तो मार ही रहेगी, चाहे वो सोने का डण्डा है, चाहे चाँदी का डण्डा या लोहे का डण्डा है। इसी प्रकार चोट तो चोट ही है, चाहे वह राग की हो, चाहे द्वेष की हो। राग तो आसक्ति रूप है और द्वेष घृणा, नफरत आदि के रूप में व्यक्त होता है।'' प्रभु महावीर ने कहा है “रागो य दोसो बिय कम्मबीयं।"
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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