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________________ चौथा फल : सुपात्रदान "दानेन भूतानि वशीभवन्ति, दानेन वैराण्यपि यान्ति नाशम् । परोप बन्धुत्वमुपैति दानैर्दानं हि सर्वं व्यसनानि हन्ति ॥" ११५. - दान से समस्त प्राणी वश में हो जाते हैं, दान से चिर शत्रुता का नाश हो जाता है। दान से पराया व्यक्ति भी अपना हो जाता है तथा अधिक क्या कहा जाये ? दान से समस्त विपत्तियों का नाश होता है। दिया हुआ दान कभी निष्फल नहीं जाता, वह शुभ कर्मों के रूप में ब्याज सहित पुनः मिल जाता है। उपदेश तरंगिणी के अन्दर बहुत आचार्य ने कहा है- "व्याजे स्याद् द्विगुणं वित्तं, व्यवसाये चतुर्गुणं । . क्षेत्रे शतगुणं प्रोक्तं, दानेऽनन्तगुणं भवेत् ॥" - ब्याज से दुगुना, व्यापार से चौगुना, खेत से शतगुणा, किन्तु दान देने से अनन्त गुणा लाभ होता है। अन्य व्यवसायों में तो फिर भी हानि की संभावना रहती है किन्तु दान देने से जो पुण्योपार्जन किया जाता है उसमें कभी टोटा आने की संभावना नहीं होती। इससे साबित होता है कि दान का महत्त्व कितना अधिक है। दान शुभ क्रिया होने से पुण्यबन्ध का कारण हैं। सुपात्रदान होने से गुणों के पोषण की भावना से युक्त होने पर बोधिबीज की प्राप्ति होती है। मुनिराज रत्नत्रय की खान इसलिए हैं कि उनसे रत्नत्रय की उपलब्धि होती है। जो अतिथि, साधु को देखकर भक्तिभाव से गद्गद हो जाता है और उन्हें एषणीय आहारादि बहराता है और यह आहार के समय मुनि को आहारदान की भावना करने वाला, , क्षणभर में ही अनादिकालीन के चक्र को तोड़ देता है। यह क्षणिक् भावनाभ्यास शाश्वत सुख की ओर कद बढ़ाने की प्रेरणा देता है। सुपात्र को प्रतिलाभित करने की उत्कृष्ट भावना अनेक भाव रोगों का उपचार करती है। सुपात्रदान की परमोत्सुकता दीनता को दूर करती है। निर्दोष आहार बहराने से उत्तम कोटि का पुण्यबन्ध होता है। सुपात्रदान देकर हर्षित होने से भाव-बन्धन टूटते हैं, जिससे द्रव्य-बन्धन का अभाव होता है और प्रमुखत्व प्राप्त होता है। सुपात्रदान का उत्कृष्ट भावना से भावभूषण (सद्गुणों की प्राप्ति) और द्रव्यभूषण (शारीरिक सौन्दर्य, जनप्रियत्व, विभूषा आदि) का लाभ होता है। जैसेसती चन्दनबाला । सती चन्दनबाला - चम्पा नाम की नगरी, जिसका राजा दधिवाहन था । दधिवाहन की महारानी धारिणी । जिसके एक कन्या है, जिसका नाम वसुमती था । बाद में चन्दनबाला रखा गया था।
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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