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________________ * तीसरा फल : सत्त्वानुकम्पा : जीवदया * * १०३ * नाम वज्ररथ रखा गया। दोनों बालक शनैः-शनैः वृद्धिंगत होते .हुए युवावस्था को प्राप्त हुए, तब पिता ने अपने दोनों सुपुत्रों का सुयोग्य एवं आयु वाली राज-कन्याओं के साथ विवाह सम्पन्न किया, यों दोनों राजकुमारों का युवाकाल आनन्दपूर्वक सुख-भोग भोगते हुए व्यतीत होने लगा। कुछ समय के बाद लोकान्तिक देव इस पुण्डरीक नगरी में उपस्थित हुए और राजा को सविनय निवेदन किया कि अब आप दीक्षा धारण करें। राजा धनरथ को संसार की अस्थिरता एवं अनित्यता का ध्यान आया। तदनुसार अपने दोनों पुत्रों को राज्य का स्वामी बनाकर जैन साधुत्व धारण कर लिया। इधर मेघरथ राजा न्याय-नीतिपूर्वक राज्य-शासन करते हुए अपना समय व्यतीत करने लगे। ___एक दिन की बात है कि जिस समय में मेघरथ राजा राजदरबार में सिंहासन पर बैठे हुए थे। उस समय में एक डरता हुआ और काँपता हुआ कबूतर उनकी गोद में आ गिरा। इससे राजा आश्चर्यचकित हो गया। ___ वह कबूतर असामान्य बुद्धिधारी होने से मनुष्य-बोली में बोला-“हे दयालु ! प्रतापी राजन् ! मैं शरणागत हूँ। आप मेरी रक्षा करें।" इतना उस कबूतर का कहना था कि तत्काल एक बाज वहाँ आ धमका। उसने राजा को सम्बोधित करते हुए कहा-“हे धर्मपालक नृपति ! यह मेरा भक्ष्य है, इसलिए इसको तुम लौटा दो।" इस पर राजा ने कहा-“हे बाज ! मैं न्याय-नीति का आराधक राजा हूँ, इसलिए शरणाग़त की रक्षा करना मेरा परम धर्म और सर्वोत्तम कर्तव्य है, अतः मैं इसको नहीं लौटा सकता हूँ किन्तु इसकी रक्षा के लिए मैं अपने शरीर का. सम्पूर्ण माँस तक देने को तैयार हूँ।" “हे बाज ! खाने के लिए अन्य अनेक प्रकार के स्वादिष्ट और पौष्टिक पदार्थ विद्यमान हैं, इसलिए तू माँस खाना छोड़ दे।" राजा के उत्तर से उस निर्दयी बाज ने यही कहा-“या तो इस पक्षी को लौटा दो या अपने शरीर का माँस काटकर इसके बराबर तुला में तोलकर दे दो।" राजा धर्मात्मा और पुण्यात्मा था, उसने अपने शरणागत की रक्षा हेतु तत्काल ही अपना माँस देना स्वीकार कर लिया। तुला मँगाई गई। तुला के एक पलड़े में तो कबूतर पक्षी को बिठाया गया। दूसरे पलड़े में राजा स्वयं अपने शरीर का माँस अपने ही हाथ से काट-काटकर रखने लगा। परन्तु ज्यों-ज्यों माँस को काटकर रखता जाता था, त्यों-त्यों उतना ही उतना
SR No.002472
Book TitlePadma Pushpa Ki Amar Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2010
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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